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सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम,
 
पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,
हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम,
 
कलेजा चीर भी दोगे नहीं कुछ मोल है "बागी"
रहा पानी न आँखों में ये मानो या न मानो तुम

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Comment by rajni khaitan on May 27, 2011 at 1:40pm
कभी मीठे एहसासोँ के बारे मे भी जरूर लिखे...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2011 at 11:07am

सही कहती है दीदी आप इसमें झूठ ना कोई,

मगर होते है कुछ भोले ये मानों या न मानो तुम



मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2011 at 9:45am

समझते हैं हमें दुश्मन पराये जो हुए अपने,
पराये ही यहाँ अच्छे ये मानो या न मानो तुम.

 

बहुत खूब अम्बरीश भाई, प्रस्तुत ग़ज़ल की आत्मा के अनुरूप बहुत ही सुंदर शे'र कहा है आपने | धन्यवाद |

Comment by Er. Ambarish Srivastava on May 27, 2011 at 9:22am
आदरणीय भाई बागी जी, आपकी ग़ज़ल बहुत दमदार व बेहतरीन है !
समझते हैं हमें दुश्मन पराये जो हुए अपने,
पराये ही यहाँ अच्छे ये मानो या न मानो तुम.
सादर:

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2011 at 8:10am
आदरणीय सतीश भईया, सराहना हेतु धन्यवाद |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2011 at 8:09am
आदरणीया शारदा दीदी, आभार |
Comment by satish mapatpuri on May 27, 2011 at 2:38am
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,
बहुत सुन्दर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2011 at 6:13pm
गुरु जी शुक्रिया

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2011 at 6:13pm

आदरणीय आर, एन. तिवारी जी ग़ज़ल की आत्मा को आपने बहुत ही बढ़िया से समझे है, सराहना हेतु धन्यवाद, स्नेह बनाये रखे |

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2011 at 6:11pm
आदरणीय शेष धर सर, आपकी तारीफ़ पाकर मेरी ग़ज़ल सार्थक हो गई, बहुत बहुत आभार !

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