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गजल(कर गुजरते कुछ.......)

छद्मवेशी देशभक्त दोस्तों को समर्पित)
2122 2122 2122 2
***
कर गुजरते कुछ अभी तैयार बैठे हैं
देख अपनों की दशा लाचार बैठे हैं।1

दुश्मनों की नस दबाते, शोर मच जाता,
इश्क के तो ढ़ेर सब बीमार बैठे है।2

दोस्त वह खंजर चलाता आँख बेपानी,
भर रहे हामी मुए इस पार बैठे हैं।3

जीतते आये दिलों पे राज भी करते
भेदियों की भीड़ है मन मार बैठे हैं।4

फूल कितने भी खिलाये चुभ रहे काँटे
बागवाँ पहले यहाँ सब हार बैठे हैं।5

रोशनी की कुछ मशालें हाथ में रखना
रास्तों पर आजकल बटमार बैठे हैं।6

वेशभूषा, बात का मतलब हुआ मुश्किल
भेड़ बनकर भेड़िये खूंखार बैठे हैं।7

मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on October 5, 2016 at 11:00pm
आभार आदरणीया
Comment by Manan Kumar singh on October 5, 2016 at 11:00pm
आभार आदरणीया
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 9:33pm

अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय |

Comment by Manan Kumar singh on October 5, 2016 at 10:25am
सभी आदरणीय मित्रों का आभार
Comment by Manan Kumar singh on October 4, 2016 at 6:55am
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सुरेश कल्याणजी।
Comment by Manan Kumar singh on October 4, 2016 at 6:54am
आभार आदरणीय अशोक जी।
Comment by Manan Kumar singh on October 4, 2016 at 6:54am
आभार आदरणीय अशोक जी।
Comment by Manan Kumar singh on October 4, 2016 at 6:53am
आभार आदरणीय अशोक जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 8:30am

आदरणीय मनन भाई , देश की वर्तमान स्थिति पर अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 1, 2016 at 3:05pm
आदरणीय मनन कुमार जी इस बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

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