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क्या पता था इश्क़ मे ये हादसा हो जाएगा

क्या पता था इश्क़ मे ये हादसा हो जाएगा

वो वफ़ा की बात करके बेवफ़ा हो जाएगा

 

रास्ता पुरख़ार है या मौसमे गुल से भरा

जब भी निकलोगे सफ़र में सब पता हो जाएगा

 

रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी भी बेवफ़ा हो जाएगी

रफ़्ता रफ़्ता इस जहां में सब फ़ना हो जाएगा

 

धड़कनें पूछेंगी ख़ुद से बेक़रारी का सबब

दो दिलों के दरमियाँ जब फ़ासला हो जाएगा

 

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर

शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा

 

अपने बारे मे सभी से पूछते रहते हो क्यूँ

अपना ही किरदार इक दिन आईना हो जाएगा

 

कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ

ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

 

डॉ॰ सूर्या बाली 'सूरज'

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

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Comment by narendrasinh chauhan on June 7, 2016 at 7:20pm

खूब सुन्दर रचना 

Comment by maharshi tripathi on June 7, 2016 at 12:17pm
हर शेर सच्चाई बया कर रहे हैं,इस गज़ल हेतु आपको बधाई,सर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 7, 2016 at 11:26am
जीवन की सच्चाई से रूबरू कराती बेहतरीन ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरम जनाब डॉ. सूर्याा बाली 'सूरज' साहब।
Comment by Sushil Sarna on June 7, 2016 at 11:19am

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर
शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा

अपने बारे मे सभी से पूछते रहते हो क्यूँ
अपना ही किरदार इक दिन आईना हो जाएगा

वाह आदरणीय डॉ. सूरज बाली जी बहुत ही खूबसूरत अशआर कहे हैं अपने। इनके भाव ज़िंदगी के बहुत करीब हैं , हकीकत को छूते हैं। इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर दाद कबूल फरमाएं।

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