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प्रायश्चित - (लघुकथा ) –

 प्रायश्चित - (लघुकथा ) –

"जतिन, रेखा गर्भवती है"!

"वाह, बधाई ,यह तो खुशी की बात है"!

"जतिन,क्वारी लडकी का गर्भवती होना किस समाज में खुशी की बात होती है"!

"तुम किस की बात कर रही हो"!

"तुम अच्छी तरह जानते हो मैं किस की बात कर रही हूं!मैं मेरी छोटी बहिन रेखा की बात कर रही हूं"!

"ओह ,मैंने समझा कि तुम अपनी किसी सहेली की बात कर रही हो"!

"तुम जानते हो उसके गर्भ का जिम्मेवार कौन है"!

"नहीं,मैं कैसे जानूंगा"!

"अरे वाह,खुद की काली करतूत इतनी जल्दी भूल गये"!

"नीना ,यह क्या बकवास कर  रही हो"!

"जतिन, रेखा जब मेरी डिलीवरी के समय यहां आई थी,तब मेरे अस्पताल जाने पर, तुमने उसकी नादानी और अकेलेपन का भरपूर फ़ायदा उठाया था,मुझे तो सब कुछ उसी समय पता चल गया था,पर बात इतनी बढ जायेगी, यह नहीं सोचा था"!

"नीना, जो भी हुआ था, दौनों की सहमति से हुआ था"!

"मगर सज़ा तो उसे अकेले भोगनी पडेगी"!

"यह तो उसे पहले सोचना था"!

"मुझे मालूम था ,तुम ऐसा ही उत्तर दोगे,मॉ तो पापा की मौत पर पिछले साल ही ही टूट गयी थी,बची खुची क़सर इस खबर ने पूरी करदी, मॉ अस्पताल में है,मुझे जाना होगा,मॉ के पास, हमेशा के लिये "!

" क्या मतलब ,तुम कहना क्या चाहती हो"!

"जतिन, तुम्हारी भूल का प्रायश्चित मुझे करना होगा, सज़ा भी मैं ही भोगूंगी"!

"तुम्हारा इरादा क्या है"!

"मैं तुम्हें हमेशा के लिये छोड रही हूं, तुम्हें रेखा से शादी करनी होगी,मैं मेरी बच्ची के साथ मॉ के पास रहूंगी"!

“ये क्या मूर्खता पूर्ण बात कर रही हो"!

"तुम मूर्खता पूर्ण कार्य कर सकते हो, मैं उसका प्रायश्चित भी नहीं कर सकती"!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on November 16, 2015 at 8:36am
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपकी सोच को नमन। बहुत अच्छी कहानी है , निसंदेह। बधाई।
पर समाधान अपूर्ण है। वास्तविकता यह है कि कुछ गलतियों के समाधान होते ही नहीं , यही सन्देश दे रही है आपकी यह कहानी।
Comment by Rahila on November 16, 2015 at 8:23am
बहुत साहसिक कदम है कथा की नायका का ।इस बेहतरीन रचना के लिये बहुत बधाई आदरणीय तेज वीर सिंह जी । सादर नमन ।
Comment by Archana Tripathi on November 16, 2015 at 12:49am
बहुत ही बढ़िया लघुकथा , आदरणीय वीर मेहता जी पिता के कर्मो की सजा आखिरकार नन्ही बेटी भुगतेगी ? क्यों इस तरह के गुनाह में महिला पात्र दोषी नहीं मानी जाती जबकि वह सीधे सीधे बहन का घर उजाड़ने के लिए जिम्मेदारर होती हैं ।सादर

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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 15, 2015 at 10:20pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी इस लघुकथा ने तो हिला दिया. बहुत शानदार लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 15, 2015 at 7:40pm
लेकिन जतिन और नीना की बेटी को आखिर किस बात की सज़ा, कब तक और क्यों ? इसका प्रायश्चित कौन करेगा ? बहुत बढ़िया प्रस्तुति,परंतु बहुत से प्रश्न निरुत्तरित आदरणीय तेज वीर सिंह जी।

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