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"क्या कर रहा है i,बार बार साँस तोड़ कर सुर गड़बड़ा रहा है ..ध्यान कहाँ है तेरा ?"

"जी ,वो रात से घरवाली की हालत बहुत खराब है ,..यहाँ से फारिग हो जाऊं ,और पैसे मिल जाएँ तो अस्पताल ले जाऊं "

"मिल जाएंगे पैसे , करोड़ों की इस शादी का इंतजाम लिया है मैंने ,तू अच्छी शहनाई बजाता है खासकर बिदाई की ,इसलिए तुझे पूरे दो हज़ार दे रहा हूँ एक घंटे के  ,बस 10-15 मिनट में  हो जाएगी बिदाई,  चले जाना "I

उसने शहनाई पर होंठ रखे ही थे कि कंधे पर हाथ महसूस किया ,छोटा भाई था .. बदहवास, चेहरा आँसूओं से तर

"दद्दा ..वो भौजाई .."

दुल्हन फूलों से लदी गाड़ी की तरफ बढ़ रही थी

डबडबाई आँखों को उसने जोर से बंद किया ,पूरी ताकत से सांस अन्दर ली और विदाई की धुन छेड़ दी...

 

मौलिक व् अप्रकाशित  

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Comment by TEJ VEER SINGH on August 18, 2015 at 5:15pm

 आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, हार्दिक बधाई!बेहतरीन और बेहद मार्मिक लघुकथा !मुझे एक ऐतिहासिक घटना याद आगयी!एक बार सुभाष चंद्र बोस एक सभा को सम्बोधित कर रहे थे!उसी वक्त उनके हाथ में एक टेलीग्राम दिया गया जिसमें उनकी मॉ के देहांत की खबर थी!वे बिना कोई प्रतिक्रिया ज़ाहिर  किए अपना भाषण देते रहे!बहुत शानदार लघुकथा!पुनः बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 18, 2015 at 2:12pm

आदरणीय प्रतिभा जी, बहुत ही मार्मिक लघुकथा हुई है. चुस्त दुरुस्त शिल्प के साथ ऐसा मार्मिक भाव सम्प्रेषण नम कर गया और मुग्ध भी कर गया. इस लाजवाब प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई. 

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