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संशोधित दोहे :...........

संशोधित दोहे :


कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान

पैसा  काम न  आयेगा, जब आएगा काल
रह  जाएगा  सब यहीं , काहे  करे  मलाल

काया माया का  भला , काहे  करे   गुमान
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान

ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़
चुका  न  पाया  दूध का , जीवन में वो क़र्ज़

मानव  दानव  बन  गया, किया खूब संहार
पाप  कर्म से  कर  लिया,  पापी  ने  शृंगार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 27, 2015 at 12:18pm

भावपूर्ण  दोहें | शिल्प पर  आदरणीय डॉ  गोपाल  नारायण जी और  आदरणीय सौरभ जी ने जो  सीख दी  है वह हम सबके लिए अमूल्य है | सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2015 at 2:27pm

इस आत्मीयता के लिए सादर आभार, आदरणीय 

Comment by Sushil Sarna on June 26, 2015 at 12:17pm

आदरणीय सौरभ जी , प्रस्तुत दोहों पर आपकी आत्मीय स्वीकृति ने मुझे आगे बढ़ने की ऊर्जा दी है।  प्रस्तुति पर आपकी स्वीकृति से मुझे बहुत ही आत्म संतुष्टि हुई है।  मेरा प्रयास आपके आशीर्वचनों के काबिल हुआ, आपका हार्दिक आभार। आदरणीय मैंने न केवल आदरणीय गोपाल जी द्वारा दर्शाये गए गठन को समझा बल्कि आपके लेख  को भी अच्छी तरह  समझा है।  इससे पूर्व मेरे लिए दोहा केवल  १३ और ११ मात्राओं से सुसज्जित चार पदों  का मात्रिक छंद था लेकिन जब आपके लेख  की गहनता को समझा तो ज्ञात हुआ कि दोहा गठन के नियम कुछ और ही हैं। बस  फिर उनको आधार मान अपने दोहों का पुनः दोहन कर सृजित किया। विषम/सम के त्रिकल और चोकल के गठन के नियम से अवगत हुआ। भविष्य में कोशिश करूंगा की आप को कम से कम इस विधा में निराशा न हो।  आपका हार्दिक आभार। कृपया अपना मार्दर्शन और और स्नेह बनाये रखें। 

Comment by Sushil Sarna on June 26, 2015 at 12:17pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी दोहों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।  आपने दोहों पर अपनी मधुर और ज्ञानवर्धक प्रतिक्रिया दी उसके लिए आपका हार्दिक आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2015 at 11:13pm

आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी छन्द प्रस्तुति मुग्ध कर रही है. आपके दोहों का क्या कथ्य है या इनके संप्रेष्य विन्दु क्या हैं,  इस पर तो चर्चा होती रहेगी.  पहली बधाई और सादर शुभकामनाएँ इसी बात पर कि आपकी मात्रिक छन्दों की रचना पटल पर प्रस्तुत हो रही है. बहुत खूब आदरणीय !

लेकिन इसके आगे आप यह अवश्य बतायें कि क्या आपने आदरणीय गोपालनारायन जी की टिप्पणी के आशय को समझ लिया है ? कि उन्होंने क्या कहना चाहा है ? उन्होंने मात्रा संयोजन को लेकर जो कुछ कहा है क्या उसका अनुकरण कर पायेंगे ? यदि हाँ, तो आपकी प्रस्तुतियों की मुझे आत्मीयता से प्रतीक्षा रहेगी.


भाई केवल प्रसादजी,
आपने पैसा काम न आयेगा, जब आएगा काल  को  सुधार कर काम न पैसा आयेगा, पर आयेगा काल किया है.

भाई, आप दोहे के विषम चरण के अन्त को बताना चाहेंगे कि किन-किन विन्यासों में यह हो सकता है ?
क्या आपके सुधार के बाद विषम चरणान्त सही हो गया है ?

शुभेच्छाएँ.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 25, 2015 at 9:06pm

आ0 सरना भाई जी,   सुंदर प्रस्तुति.

कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान ...........कर्म बिना मेवा नहीं, बिना मान नहिं शान .
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान...........विधवा सी लगती सदा, बिना सुरों की तान.

पैसा  काम न  आयेगा, जब आएगा काल ...........काम न पैसा आयेगा, पर आयेगा काल.
रह  जाएगा  सब यहीं , काहे  करे  मलाल......बहुत सुंदर

काया माया का  भला , काहे  करे   गुमान ..........बहुत सुंदर...वाह
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान..................नश्वर इस संसार में, क्षण भर का अभिमान.

ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़ 
चुका  न  पाया  दूध का , जीवन में वो क़र्ज़........अतीव सुंदर

मानव  दानव  बन  गया, किया खूब संहार 
पाप  कर्म से  कर  लिया,  पापी  ने  शृंगार............अतीव सुंदर

सभी  दोहे आतीव सुंदर भाव  भरे दोहे मन को छू गये.  हार्दिक बधाई स्वीकारे. गोपाल भाई जी से मैं भी सह्मत हूँ. सादर

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2015 at 6:55pm

आदरणीय डॉ गोपाल भाई साहिब दोहों पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया ने दोहा ज्ञान के प्रति मेरी जिज्ञासा को प्रोत्साहित किया। आपका इस हेतु जितना भी आभार व्यक्त करूँ , कम है। आदरणीय मैंने दोहों को नियमानुसार ढालने का भरसक प्रयत्न किया है। आशा है आप अब मेरे प्रयास से निराश नहीं होंगे। अपने स्नेह और मार्गदर्शन बनाये रखें। आपका हार्दिक आभार। इस प्रत्युत्तर के बाद मैं पुनः इन दोहों को एडिट कर पोस्ट कर रहा हूँ। आपका स्नेह चाहूंगा। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2015 at 8:13pm

आ० सरना जी

दोहे सुन्दर भावपूर्ण  है शिल्प थोडा  साधना पडेगा '

बिन ज्ञान नहीं शान , इसका संगठन  2+३+३+३  है जो सही नहीं है , सही सगठन  4+4+३ या ३+३+2+३ है  i इसी प्रकार --बिना तलवार म्यान,का संगठन सही नहीं  है . ----आगे 

ममता का न  मान किया, का संगठन  4+३+3+३  हां जबकि  सही संगठन 4+4+३+2 या ३+३++2+३ +2  है i इसी प्रकार मिटा रहा न जाने क्यूँ--- भी त्रुटिपूर्ण है. सुधार आपसे अपेक्षित है , सादर .

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