For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रमल मुरब्बा सालिम  

2122   2122

क्या  ज़माने आ गये हैं ?

बेशरम  शर्मा  गये  हैं  I

 

था  भरोसा बहुत उनका

वे मगर उकता गये हैं I

 

पोंछ लें आंसू कृषक अब 

स्वर्ण वे  बरसा गये हैं I

 

देखकर   अंदाज   तेरे

हौसले  मुरझा  गये है I

 

लाजिम है हो नशा भी

जाम जब टकरा गये हैं I

 

भौंकते थे जो कभी वह

महफ़िलों में छा गये है I

 

एक झटका था जरा सा

देश तक भहरा गये हैं I   

  

मर रह ही है देव नदियाँ

सिन्धु सब घबरा गये है I

(मौलिक व् अप्रकाशित )

 

 

Views: 802

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on June 11, 2015 at 1:27am

बहुत ही सुन्दर गज़ल, सुन्दर भाव ! बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by विनय कुमार on June 11, 2015 at 1:19am

सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , बधाई क़ुबूल करें. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 10, 2015 at 4:33pm

आ० सुनील जी आपका आभार  और  संदेह् दूर करने हेतु धन्यवाद .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 10, 2015 at 4:31pm

आ० अनुज

धन्यवाद .

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 10, 2015 at 1:40pm
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है बेशर्म उर्दू शब्द के लिहाज से जितना सही है बेशरम हिंदी के लिहाज से सही लगता है जब शह्र को शहर नर्म को नरम वज्न को वजन लिखा जा सकता है तो...?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 10, 2015 at 12:42pm

आदरनीय बड़े भाई , सुझाव न. 2 को मेरी गलती समझिये और ध्यान न दीजियेगा । मिसरा आपका सही है ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 10, 2015 at 12:10pm

आ० नीलेश जी

आपकी सलाह मेरे लिए बड़ा मायने रखती है अनुग्रह बना रहे .  सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 10, 2015 at 12:07pm

आ० वीनस जी

आपकी दृष्टि मेरे लिए आवश्यक भी  है और उपयोगी भी . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 10, 2015 at 12:06pm

आ० समर कबीर साहिब

आप लोग मुझे इसी तरह संवारते रहे .सादर . बेशर्म की जगह बेहया ठीक रहेगा क्या?

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 10, 2015 at 12:04pm

आ० अनुज

बहुत अच्छे सुझाव दिए आपने . सुझाव नं 2 पर फिर विचार करना चाहें . बाकी सुधार मैं  कर लूँगा , सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service