For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्‍तक- 1

भला होता है वो कैसा जिसे सब प्‍यार कहते है
नही यह भी पता मुझको किसे सब यार कहते है
न जाना मैं कभी इनको न पहचाना कभी इनको
यही कारण मुझे सब आदमी बेकार कहते है

मुक्‍तक -2
नही होता अगर ये दिल तो हम भी शान से जीते
लड़ा कर जाम से हम जाम तुम्‍हारे साथ में पीते
मगर कमबख्त दिल मेरा हमेशा नाम ले उसका
भुलाने ही नही देता पलों को साथ जो बीते

मुक्‍तक -3
करू क्या काम दिन भर मै मुझे पत्नी बताती है
झुका कर के नज़र चलना मुझे हरदम सिखाती है
नज़र मेरी चली जाये अगर अपनी पड़ोसन पे
चला बेलन वही दिन में मुझे तारे दिखाती है

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by narendrasinh chauhan on May 28, 2015 at 10:18am

बहोत खूब सुन्दर मुस्तक, सुन्दर गजल पर बधाई

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 8:05am

वाह..सुन्दर मुक्तक हुए है!हार्दिक बधाई आ० अखंड जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 11:00pm

आदरणीय अखंड जी बहुत बेहतरीन मुक्तक है आपको बधाई 

निवेदन- 

न जाना मैं कभी इनको न पहचाना कभी इनको ... इस मैं को है किया जा सकता है 

लड़ा कर जाम से हम जाम तुम्‍हारे साथ में पीते.... तुम्हारे के कारण मिसरा बेबह्र हो रहा है इसे तेरे/उनके किया जा सकता है 

हा हा हा ,,, ये बहुत बढ़िया हुआ है-

करू क्या काम दिन भर मै मुझे पत्नी बताती है
झुका कर के नज़र चलना मुझे हरदम सिखाती है
नज़र मेरी चली जाये अगर अपनी पड़ोसन पे
चला बेलन वही दिन में मुझे तारे दिखाती है

Comment by Samar kabeer on May 27, 2015 at 10:54pm
जनाब अखंड जी,आदाब,पहला और तीसरा दोनों मुक्तक पसंद आए ,दाद क़ुबूल फ़रमाऐं
Comment by shikha kaushik on May 27, 2015 at 9:14pm

तीनों ही मुक्तक बेहतरीन हैं पर तीसरे की बात निराली है .बधाई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 27, 2015 at 7:47pm

बहुत बढ़िया वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service