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गुरू लीला (लघुकथा) : कान्ता राॅय

धर्म के प्रति प्रगाढ़ आस्था के कारण ही सुधा आज घर द्वार सब त्याग गुरू आश्रम चली आई ।

"सुना है गुरूदेव आज रात खास आयोजन करने वाले है । जाने आज किसका भाग्योदय होने वाला है? " आश्रम में सुगबुगाहटें जारी थी ।

लगभग १२ बजे सभा गृह में सब गुरू सेविकायें उपस्थित थी कि सहसा गुरूदेव का आगमन हुआ । पीताम्बर धारण किये हुए, सिर पर मोर मुकुट सजाये हुए आज गुरूदेव कृष्ण रूप में रास के लिए राधा का चयन करने वाले थे ।

कृष्ण रूपी गुरूदेव जब सुधा के सामने ठिठके तो उसका हृदय रो उठा ।गनीमत यह हुई कि गुरु -कृष्ण ने आगे बढ़ कर एक अन्य सेविका को अपने अंग से लगाया और अंदर कक्ष में चले गये ।सुधा तत्क्षण अपने घर वापस लौट आई ।


कान्ता राॅय
भोपाल

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on January 23, 2015 at 12:04pm
आ.डाॅ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर जी , आपका मार्ग दर्शन पाकर मै अभिभूत हुई । हौसला वर्धन के साथ यह अनमोल उपहार हम कनिष्ठ साहित्यकारों के लिए आगे जाकर बहुत उपयोगी साबित होगा । आभार आपको दिल से ।
Comment by kanta roy on January 23, 2015 at 11:57am
आ.मिथिलेश वामनकर जी मेरा हौसला बढाने के लिए तहे दिल से आपको आभार ।
Comment by kanta roy on January 23, 2015 at 11:55am
बहुत बहुत आभार आपको आ.श्याम नारायण वर्मा जी मेरा हौसला बढाने के लिए ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 23, 2015 at 11:18am

आदरणीया

बहुत सुन्दर ढंग से अपने गुरु लीला का निर्देशन किया  i आपको बधाई i अंतिम पंक्ति कुछ ऐसी होती तो अधिक मजा आता -

कृष्ण  रूपी गुरूदेव जब सुधा के सामने ठिठके तो उसका हृदय रो उठा I  गनीमत यह हुयी  कि गुरु -कृष्ण ने आगे बढ़ कर एक अन्य सेविका को अपने अंग से लगाया और अन्दर कक्ष में चले गए I

       सुधा तत्क्षण अपने घर वापस लौट आयी I  


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 23, 2015 at 10:45am
सफल लघुकथा। कथ्य का मर्म क्या खूब उभरकर सामने आया है। करारी चोट। बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति पर।
Comment by Shyam Narain Verma on January 23, 2015 at 10:21am
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥

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