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गज़ल -हर ग़ज़ल में आप ही तो हैं (गिरिराज भंडारी)

1222     1222    1222       1222

मेरी हर शायरी में हर ग़ज़ल में आप ही तो हैं

मेरे हर नज़्म की होती पहल में आप ही तो हैं

 

मुझे तो ज़िन्दगी के रंग सारे ठीक लगते थे

किसी भी रंग के रद्दोबदल में आप ही तो हैं

 

मैं कितनी भी रखूँ दूरी हमेशा पास में हो आप 

मेरे दिल में बना है उस महल में आप ही तो हैं

 

ये दुनिया है यहाँ ज़ह्राब भी शामिल है आँसू भी

मेरी आँखों से बहते इस तरल में आप ही तो हैं

 

अलग कब आप हो मुझसे, हवायें हों मुख़ालिफ तो

अदावत से मिले सारे गरल में आप ही तो हैं 

 

किसे देखूँ  किसे छोड़ूँ बतायें आप ही मुझको

नज़र के सामने सारे पटल में आप ही तो हैं

 

बहारों में नजारों में सभी नदियों में झरनों में

कली में, फूल में, खिलते कमल में आप ही तो हैं

 

मेरे ख़्वाबों ख़यालों में मेरे लम्हों में, सदियों से

मेरी हर सोच के सारे अमल में आप ही तो हैं

 

यहाँ जब और कोई है नहीं बस आप हैं,तो फिर

ये सारे हो रहे जंगो जदल में आप ही तो हैं 

*********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 2, 2014 at 10:47pm
आदरणीय सोमेश भाई , आपकी आत्मीय सराहना के लिये दिल से आभारी हूँ , ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 2, 2014 at 10:45pm
आदरणीय बैद्य नाथ भाई , आपकी सराहना ने हमेशा मेरी हिम्मत बढाई है , आपका शुक्र्गुजार हूँ ।
Comment by somesh kumar on November 2, 2014 at 12:54pm

बेहद सुंदर और परिपूर्ण गज़ल,आप को इस मंच पे वापस पाकर दिल भी कह उठा -आप ही तो हैं |

Comment by Saarthi Baidyanath on November 1, 2014 at 10:32pm

बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है जनाब आपने .... ! दिल को जोड़े रखा आपने पूरी ग़ज़ल तक  ..बहुत खूब 

मेरे ख़्वाबों ख़यालों में मेरे लम्हों में, सदियों से

मेरी हर सोच के सारे अमल में आप ही तो हैं..... वाह वाह 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:11pm

आदरणीय मुकेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:10pm

आदरणीया राजेश जी , आपकी सराहना ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया , आपका दिली आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:09pm

आदरणीय सुनील सरन भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:08pm

आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by umesh katara on November 1, 2014 at 6:51pm

बाहहहहहह बाहहहहहहह बहुत सुन्दर और आनन्दित ग़ज़ल के लिये बधाई सर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2014 at 5:48pm

वाह बहुत ही सुन्दर प्रेम रस में पगी ग़ज़ल 

मुझे तो ज़िन्दगी के रंग सारे ठीक लगते थे

किसी भी रंग के रद्दोबदल में आप ही तो हैं---शानदार 

 

मैं कितनी भी रखूँ दूरी हमेशा पास में हो आप 

मेरे दिल में बना है उस महल में आप ही तो हैं-----क्या बात 

बहुत- बहुत बधाई आपको आ० गिरिराज जी 

 

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