For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

 

रेखागणित क्या है ?

मै नहीं जानता

रैखिक ज्ञान का पारावार है

मान लेता हूँ

मेरे लिए रेखा मात्र रेखा है

सरल या विरल

सरल यानि मिलन से दूर

मिलन के लिए सरलता नहीं

तरलता चाहिए

अकड़ नहीं विनम्रता चाहिए

इसीलिये सरल रेखा

मुड़ कर ही मिल पाती है

वह भी स्वयं से

उसका पोर-पोर ही है मिलन बिंदु

जिसका चरम रूप है वृत्त

वृत्त क्या ? महज एक शून्य

शून्य अर्थात शून्य

स्वयं से मिलन का अर्थ I

 

दो सरल समांतर रेखाये 

भी नहीं मिलती

साथ-साथ चल सकती है

अनंत तक

अकड़ मिलने नहीं देती

पर दो तिरछी रेखाएं भी पर्याप्त नहीं है

एक परिपूर्ण मिलन के लिए

यदि उनकी दिशायें भिन्न हैं

पहुँच से परे हैं

सहज नहीं है दो रेखाओं का मिलन

द्वाधिक रेखायें भी तभी मिलती हैं

जब उभयनिष्ठ हो उनका एक बिंदु

तब रेखायें मिलती भी हैं

और काटती भी हैं

मानो यह भी सृष्टिगत प्रणय है

पर संक्रमण बिंदु से

कौन कितना दूर है

इससे फर्क पड़ता है

सम्बन्ध की प्रगाढ़ता का

यह भी मानदंड है  I   

 

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

Views: 653

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on October 8, 2015 at 12:40pm

रेखागणित क्या है ? वाह ! बहुत खूब गहन चिंतन है यहाँ ज्यामिति विज्ञानं पर। " मिलान के लिए सरलता नहीं तरलता चाहिए " बहुत गहरी बात है ये।
"वृत्त क्या ? महज एक शून्य , शून्य अर्थात शून्य , स्वयं से मिलन का अर्थ I " अद्भुत सोच रोपित है यहां। दो समान्तर रेखाओं का साथ साथ चलना अनंत तक , लेकिन अकड़ मिलने नहीं देती। बहुत खूब लिखा है आपने आदरणीय डा गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी। बहुत बहुत बधाई आपको इस सार्थक कर्म के लिए। सादर नमन।

Comment by vijay nikore on October 10, 2014 at 12:20pm

मैं हाल में ओ बी ओ पर कम ही आ पाया हूँ, अत: कई  रचनाएँ पढ़ने से रह गईं। आपकी इस इतनी अच्छी रचना पर देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

आज के परिप्रेक्ष्य में यह रचना पूर्णत: सटीक बैठती है, और पाठक को सोचने के लिए बाधित करती है। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 12:01pm

आदरणीय चौहान जी

आपका कोटि कोटि आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 11:58am

आदरणीय  विजय जी

आपका आभार i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 11:55am

महिमा जी

आपका आभारी हूँ i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 11:54am

श्याम नारायन जी

आपका शत  -शत आभाiर  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 11:51am

विजय सर  !

अनुग्रहीत हूँ i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 11:50am

जीतू जी

सादर आभार i

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 1, 2014 at 7:31pm

आपने गणित का सामाजिक सरोकर के रूप अच्छा निरूपण किया है ।  गणित के अमूर्त शब्दावली को मूर्त कर दिया है हार्दिक बधाई आदरणीय श्रीवास्तवजी

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on October 1, 2014 at 6:43pm

हर मानदंड पर खरा "यह मानदंड"
अद्भुत चिंतन, मनन और विश्लेषण.बहुत बधाई आदरणीय गोपाल जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
3 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
3 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई तिलक राज जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह से लेखन को पूर्णता मिली। हार्दिक आभार।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, हार्दिक धन्यवाद।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service