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ग़ज़ल: कांटे जो मेरी राह में (भुवन निस्तेज)

कांटे जो मेरी राह में बोये बहार ने

छूकर बना दिया है उन्हें फूल यार ने

 

यारी है तबस्सुम से करी अश्क-बार ने

कुछ तो असर किया है खिजाँ की फुहार ने

 

था बाकमाल कनखियों से झांकना तेरा

छोड़ा नहीं है आज तलक उस खुमार ने

 

इन ओस की बूंदों से कहाँ प्यास मिटेगी

सहरा बना दिया है मुझे इन्तजार ने

 

याद आई गाँव की वो घनी छाँव दोपहर

छोड़ा है बेशज़र शहर में रहगुज़ार ने

 

अब रहबरों से रहजनी होने की है ख़बर

पर्दे सभी हटा दिए हैं राजदार ने

 

राहों की मुश्किलों ने मिरे होश लिए यूँ

अब तक गले नहीं है लगाया दयार ने

 

मैं बेकरारियों का भला क्या गिला करूँ

मेरा करार छीन लिया खुद करार ने

 

टूटेंगे कांच से है मरासिम ये जानकर

खुद का लहू निचोड़ा दिले-सोगवार ने

 

अब की बहार ने किया ‘निस्तेज’ ये चमन

छोड़ा नहीं था माज़ी की गर्दो-गुबार ने

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by भुवन निस्तेज on October 9, 2014 at 2:29pm

आदरणीय शिज्जू "शकूर" जी मेरे प्रयास को अनुमोदन को सराहने हेतु सादर धन्यवाद...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 7:26am

आदरणीय भुवन जी ग़ज़ल पर प्रयास प्रभावित करता है खासतौर पे अशआर बहुत पसंद आये

था बाकमाल कनखियों से झांकना तेरा

छोड़ा नहीं है आज तलक उस खुमार ने

 

इन ओस की बूंदों से कहाँ प्यास मिटेगी

सहरा बना दिया है मुझे इन्तजार ने

मैं बेकरारियों का भला क्या गिला करूँ

मेरा करार छीन लिया खुद करार ने

Comment by भुवन निस्तेज on September 19, 2014 at 10:35pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब अनेक अनेक धन्यवाद....

Comment by भुवन निस्तेज on September 19, 2014 at 10:34pm

आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी भाई बहुत बहुत धन्यवाद....

Comment by भुवन निस्तेज on September 19, 2014 at 10:33pm

आदरणीय गिरिराज भंदरिसहब आप्का हार्दिक अभिनन्दन....

Comment by भुवन निस्तेज on September 19, 2014 at 10:31pm

आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' भाई आप की सराहना वन्दनीय है कृपया जरूरी सुझाव भी देते रहें ....

Comment by भुवन निस्तेज on September 19, 2014 at 10:29pm

आदरणीय khursheed khairadi साहब आपकी दाद बहुमूल्य है. कृपया स्नेह बनाए रखे..

Comment by भुवन निस्तेज on September 19, 2014 at 10:27pm

आदरणीय हरिबल्लभ शर्मा साहब बेहद धन्यवाद...

Comment by भुवन निस्तेज on September 17, 2014 at 10:12pm

आदरणीय कृष्ण सिंह पेला भाइ साहब, मुज्झे भी लग रहा है की कुछ छिद्र इस रचना में रह ही गए हैं. मैं इसे ठीक कररने की कोशिस करूँगा.

Comment by भुवन निस्तेज on September 17, 2014 at 10:11pm

आदरणीय नीरज नीर साहब सादर आभार....

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