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ग़ज़ल- ज़िंदगी क्यूँ तेरा पता ढूँढता हूँ !!

बहर - 2122 / 1212 / 2122 

रेत पर किसके नक्शे पा ढूँढता हूँ !
ज़िंदगी क्यूँ तेरा पता ढूँढता हूँ !!

किस ख़ता की सज़ा मिली मुझको ऐसी 
माज़ी में अपने ,वो ख़ता ढूँढता हूँ !!

य़क सराबों के दश्त में खो गया मैं
अब निकलने का रास्ता ढूँढता हूँ !!

दौरे गर्दिश में संग ,गर चल सके जो
कोई ऐसा मैं हमनवा ढूँढता हूँ !!

रौशनी थी मुझे मयस्सर कब आखिर
फिर भी क्यूँ कोई रहनुमा ढूँढता हूँ !!

.

चिराग़ [June 28,2014]

पूर्णतः मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Maheshwari Kaneri on June 29, 2014 at 12:03pm

बहुत सुंदर गजल आदरणीय केडिया जी   बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 9:36am

बहुत सुंदर गजल आदरणीय केडिया जी

दौरे गर्दिश में संग ,गर चल सके जो
कोई ऐसा मैं हमनवा ढूँढता हूँ..............इस शेर पर आपको विशेष बधाई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 28, 2014 at 6:40pm

केडिया जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने  i  आपको  बधाई i

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