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.जिंदगी तुझे ही पढ़ लेते हैं ---डा० विजय शंकर

चलो किताबों को बंद कर देते हैं
जिंदगी तुझे ही सीधे-सीधे पढ़ लेते हैं .
किताबों में सबकुझ तेरे बारे में ही तो है
लो , तुझसे ही सीधे-सीधे बात कर लेते हैं.
किताबें तो बहुत सी हैं , मिल भी जायेंगीं
उन को पढ़ लूँ तो क्या तू मिल जायेगी .
मौत को कितने और कौन-कौन पढ़ते हैं
पर उसका वादा है , सबको मिलती है .
भरोसा नहीं , तू किसको मिले , कितनी मिले
तेरे लिये , तेरे चाहने वाले दिन रात लगे रहते हैं .
अरे सब कुछ तो तेरे लिए ही है जिंदगी में
तू है तो सब है , तू नहीं तो क्या है जिंदगी में .
इसलिए चलो किताबों को बंद कर देते हैं .
तू है , तुझसे सीधे-सीधे बात कर लेते हैं .
..डा० विजय शंकर---------------
( मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 9:54pm
प्रिय जिद जी ,
पढ़ते तो वास्तव में हम ज्ञान के लिए है. सीमित और बहुत सीमित ज्ञान के लिए . जब कि दुनिया में कितना अज्ञान भरा है. एक बार अज्ञान के व्योम मंडल में नजर उठा कर देखे . असीम आनंद प्राप्त होता है , जैसे फिर से बचपन लौट आया , सारे कौतूहल वापस ले आया . तब पता चलता है ज्ञान क्या है , जितना भी है कितना सीमित है . .... आपने जो लिखा , अच्छा लगा . धन्यवाद .
सादर.
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 9:37pm
Dr. Gopal Narrain Srivastav ji, bahut bahut dhanyvaad .
Comment by Zid on June 11, 2014 at 8:16pm

विजयजी ,
पढ़ पढ़ कर जो बात समाज न आये वैसेही पढ़ लेते है
क्या सीधी क्या उलटी ज़िद सबकी है सब इसी दायरेमें रहते है

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2014 at 7:23pm

विजय जी

मै आपके हौसले की दाद  देता हूँ  i  आमीन i

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 4:51pm
Thanks Jitendra Geet ji, for such a lovely comment .
Thanks Abhinav Arun ji for such a compliment .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 11, 2014 at 11:42am

सच ही तो है, पढ़कर भी अनुकरण किसने किया है. अनुभव ही काम आता है. प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डा.विजय जी

Comment by Abhinav Arun on June 11, 2014 at 11:03am
सुन्दर भावाभिव्यक्ति डॉ साहिब ! बधाई !!

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