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ग़ज़ल :अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

आदमी में आदमीयत है नहीं

इससे बढ़कर  कोई दहशत है नहीं

 

रासते, मंजिल, सफ़र, सब है मगर

इस मुसाफिर में वो सीरत है नहीं

 

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं

 

काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ

जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं

 

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं

 

अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे

अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

भुवन निस्तेज

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by umesh katara on May 7, 2014 at 9:21pm

वाहहहहहहह अच्छी गजल के लिये बधाई

Comment by coontee mukerji on May 7, 2014 at 6:03pm

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं....जीने का अगर राज़ आये तो कितनी हसीं है जिंदगी. खूबसूरत खूबसूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाई...भुवन जी.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2014 at 12:21pm

रासते, मंजिल, सफ़र, सब है मगर

इस मुसाफिर में वो सीरत है नहीं

क्या खूब कहा भुवन भाई , हार्दिक बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on May 7, 2014 at 10:18am
बहुत सुंदर, भावनाओं से परिपूर्ण इस गजल पर आपको बहुत बहुत बधाई 

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