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2122 1122 22

ज़ोर तूफ़ान का चल जाने दो

मुझको लहरों पे निकल जाने दो

 

है मुख़ालिफ़ कि हवाओं का रूख

ठहरो कुछ देर सँभल जाने दो

 

फिर न दिल में कोई रह जाये मलाल

इक दफा दिल को मचल जाने दो

 

मोजज़ा हो न हो उम्मीदें हों                          मोजज़ा =चमत्कार

जी किसी तरह बहल जाने दो

 

आग आखिर ये बुझेगी तो ज़रूर

डर इसी आग में जल जाने दो

 

बूंद जायेगी कहाँ तक देखूँ

गिर के पत्थर पे उछल जाने दो

 

रात गहरी हुई जाती है अब

बस करो यार ग़ज़ल जाने दो

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2014 at 8:25pm

हार्दिक धन्यवाद भाईजी.. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 13, 2014 at 8:21pm

दिखने में छोटी सी भूल दरअस्ल बहुत बड़ी गलती है मेरा ध्यान तो गया नहीं, आपसे पहले किसी ने ध्यान दिलाया नहीं, भर्म तो नही लेकिन भ्रम का वज्न मैंने 21 ले लिया है इसे कहते हैं अतिआत्मविश्वास :-((
आदरणीय सौरभ सर आपका आभार सराहना के लिये भी और इस्लाह के लिये भी l मिसरा बेबह्र है ग़लती मेरी है मैं सुधार लेता हूँ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2014 at 3:21pm

बूंद जायेगी कहाँ तक देखूँ

गिर के पत्थर पे उछल जाने दो... .  बहुत खूब !

एक अच्छी ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कह रहे हैं हम.  लेकिन भाई शिज्जूजी, भ्रम  को भर्म कैसे पढ़ें ?
आपके मतले का उला ही मुझे भ्रम में डाल गया है कि आपने इसकी तक्तीह कैसे की है.
शुभ-शुभ



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 3:11pm

आदरणीय सत्यनारायण जी आपका हार्दिक आभार

Comment by Satyanarayan Singh on May 3, 2014 at 1:02pm

सुन्दर एवं शानदार गजल हेतु ढेरों बधाई स्वीकार करें आदरणीय शिज्जू जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 29, 2014 at 9:04pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 29, 2014 at 9:03pm

आदरणीय रमेश भाई आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 29, 2014 at 9:02pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 29, 2014 at 9:01pm

आदरणीय गजेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 29, 2014 at 9:00pm

आदरणीय वीनस जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।"
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