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कुछ कह मुकरियां

१. लगे अंग तो तन महकाए,

जी  भर देखूं  जी में आये,

कभी कभी पर  चुभाये शूल,

का सखी साजन ? ना सखी फूल.

 

 

२. गोदी में सर रख कर सोऊँ,

मीठे मीठे ख्वाब में खोऊँ,

अंक में लूँ, लगाऊं छतिया.

का सखी साजन? ना सखी तकिया .

 

 

३ उससे डर, हर कोई भागे,

बार बार वह लिख कर माँगे.

कहे देकर फिर करो रिलैक्स.

का सखी साजन? ना सखी टैक्स ..

 

४. गाँठ खुले तो इत उत डोले,

जिधर हवा उधर ही हो  होले,

कोई नियत ना कोई ठांव,

का सखी साजन ? ना सखी नाँव.

 

५. गोद बिठा कर जगत  घुमाये ,

तरह तरह के दृश्य दिखाए, 

बिना उर्जा के रहे बेकार,

का सखी साजन ? ना सखी कार.

नीरज कुमार नीर 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on March 2, 2014 at 8:33pm

कमाल की प्रस्तुति..............शब्द सजीव हो उठे.............

Comment by Neeraj Neer on March 2, 2014 at 4:33pm

हार्दिक आभार आदरणीया मीना पाठक जी 

Comment by Meena Pathak on March 2, 2014 at 3:57pm
Bahut sundar .. Badhai
Comment by Neeraj Neer on March 2, 2014 at 11:31am

आदरणीय भंडारी साहब आपको मेरी मुकरियों पर प्रयास अच्छा लगा , मुझे बहुत ख़ुशी हुई .. धन्यवाद उत्साहवर्धन के लिए 

Comment by Neeraj Neer on March 2, 2014 at 11:31am

आ. भाई जीतेन्द्र जी आपका हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Neeraj Neer on March 2, 2014 at 11:30am

आदरणीया कल्पना रामानी जी आपको मेरा प्रयास सुन्दर लगा , इससे मुझे प्रोत्साहन मिला .धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2014 at 9:36am

आदरणीय नीरज भाई , कह्मुकरियों के सफल प्रयास के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2014 at 2:12am

बहुत खूब, सुंदर कह-मुकरियाँ आदरणीय नीरज जी, बधाई स्वीकारें

Comment by कल्पना रामानी on March 1, 2014 at 9:18pm

वाह,वाह!! बहुत खूब काफिला बढ़ता जा रहा है। सुंदर प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय नीरज जी

Comment by Neeraj Neer on March 1, 2014 at 8:46pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय अन्नपूर्णा जी , आपको अच्छी लगी , इससे मेरा हौसला बढ़ा ..

कृपया ध्यान दे...

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