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क्या तुम्हें उपहार दूँ : एक गीत (नीरज कुमार नीर)

क्या तुम्हें उपहार दूँ,

प्रिय प्रेम के प्रतिदान का.

 

तुम वसंत हो, अनुगामी

जिसका पर्णपात नहीं.

सुमन सुगंध सी संगिनी,

राग द्वेष की बात नहीं.

 

शब्द अपूर्ण वर्णन को

ईश्वर के वरदान का.

 

विकट ताप में अम्बुद री,

प्रशांत शीतल छांव सी,

तप्त मरू में दिख जाए,

हरियाली इक गाँव की.

 

कहो कैसे बखान करूँ

पूर्ण हुए अरमान का.

 

मैं पतंग तुम डोर प्रिय,

तुम बिन गगन अछूता है.

तुमसे बंधकर  जीवन

व्योम उत्कर्ष छूता है.

 

तुम ही कथाकार हो, इस

जीवन के आख्यान का.

 

क्या तुम्हें उपहार दूँ,

प्रिय प्रेम के प्रतिदान का.

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 8:54pm

आदरणीय नीरज नीर भाई , अपने प्रिय को समर्पित भावों से सजी आपकी रचना के लिये आपको बहुत बधाई !!

Comment by Neeraj Neer on February 10, 2014 at 8:38pm

आ. भाई शिरोमणि पाठक जी आपका बहुत आभार. 

Comment by Neeraj Neer on February 10, 2014 at 8:37pm

आदरणीय कुंती मुकर्जी जी बहुत  धन्यवाद, इसी तरह प्रोत्साहन देते रहें. 

Comment by Neeraj Neer on February 10, 2014 at 8:36pm

आदरणीया मीना पाठक जी हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ. 

Comment by Neeraj Neer on February 10, 2014 at 8:35pm

हार्दिक आभार आदरणीया सरिता भाटिया जी 

Comment by Neeraj Neer on February 10, 2014 at 8:35pm

आ. भाई  अरुण जी ह्रदय तल से आपका आभार व्यक्त करता हूँ. आपका समर्थन और प्रेम हमेशा प्रोत्साहित करता है .

Comment by Neeraj Neer on February 10, 2014 at 8:34pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा साहब हार्दिक आभार.

Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 4:35pm
बहुत सुन्दर गीत आदरणीया भाई नीरज जी, हार्दिक बधाई आपको …… सादर
Comment by coontee mukerji on February 10, 2014 at 3:37pm

मैं पतंग तुम डोर प्रिय,

तुम बिन गगन अछूता है.

तुमसे बंधकर  जीवन

व्योम उत्कर्ष छूता है.......बहुत ही सुंदर गीत.नीरज जी.साधुवाद.

 

Comment by Meena Pathak on February 10, 2014 at 2:24pm

बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आप को आ० नीरज जी 

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