For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहे : शुभ-नूतन की बाट // -सौरभ

प्रतिपल नव की कल्पना, पल-व्यतीत आधार  
सामासिक दृढ़ भाव ले,  आह्लादित संसार  

सिद्धि प्रदायक वर्ष नव : धर्म-कर्म-शुभ-अर्थ
मंशा कुत्सित दानवी, लब्धसिद्धि हित व्यर्थ

शाश्वत मनस स्वभाव से नूतन नवल स्वरूप
खेल रही मृदु ओस में खिलखिल करती धूप  

आओ मिलजुल तय करें, हमसब निज संसार
स्वीकारें उत्साह पल, जीयें मधुमय प्यार   

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप
फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप  
*************

-सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1056

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on December 27, 2013 at 2:46am

प्रतिपल नव की कल्पना, पल-व्यतीत आधार  
सामासिक दृढ़ भाव ले,  आह्लादित संसार  ......सबका मन आह्लादित होवे....नये वर्ष की नयी धूप की नयी उमंग के साथ ढेर सारी मंगल कामनाएँ.

सादर

कुंती.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 26, 2013 at 10:43pm

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ 
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ 

अद्भुत, सुन्दर दोहावली आदरणीय सौरभ जी  !

Comment by नादिर ख़ान on December 26, 2013 at 10:34pm

शाश्वत मनस स्वभाव से नूतन नवल स्वरूप
खेल रही मृदु ओस में खिलखिल करती धूप

आओ मिलजुल तय करें, हमसब निज संसार
स्वीकारें उत्साह पल, जीयें मधुमय प्यार

आदरणीय सौरभ जी, आपने एकबार फिर कमाल कर दिया।

हर फील्ड में आप माहिर हैं । बहुत सुंदर दोहे ...........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 26, 2013 at 10:21pm

वाह बेहतरीन दोहावली है, आदरणीय सौरभ सर, बहुत बहुत बधाई इस दोहावली के लिये

Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2013 at 10:05pm

शाश्वत मनस स्वभाव से नूतन नवल स्वरूप
खेल रही मृदु ओस में खिलखिल करती धूप ////////वाह आदरणीय क्या बिम्ब खीचा है आपने

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप
फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप ////अहा क्या कहने आदरणीय

बहुत ही सुन्दर दोहे आदरणीय बहुत बहुत बधाई आपको। …।सादर

अनुपम दोहों के लिए ,श्रीमन का आभार
अविरल यूँ बहती रहे,अनुपम रसमय धार!!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 26, 2013 at 9:58pm

आहा ! सभी दोहे मोतियों के मानिंद असर छोड़ते हैं, सबसे सुन्दर मुझे निम्नलिखित दोहा लगा

//आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ//

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर |

Comment by रमेश कुमार चौहान on December 26, 2013 at 9:46pm

शब्द प्रति शब्द खिल रहे, भाव देत गंभीर ।
दोहा प्रति दोहा कहे, सौरभ सर मतिधीर ।।

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:01pm

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ ...अति सुंदर

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप

फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप ...    .... क्या बात है !

 
. वाह वाह सम्पूर्ण दोहावली  अनुपम है... आदरणीय सौरभ सर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ...

Comment by बृजेश नीरज on December 26, 2013 at 8:00pm

वाह! अप्रतिम! नूतनता को कितने सुन्दर अर्थ मिले हैं!

//आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ 
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ// ........अप्रतिम!

इसके आगे क्या लिखा जाएगा!

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

सादर!

Comment by कल्पना रामानी on December 26, 2013 at 7:51pm

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप
फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप....बहुत सुंदर

हर दोहा उत्तम भाव लिए हुए है,   आदरणीय सौरभ जी सादर बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
10 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
12 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service