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श्वेत वसना दुग्ध सी, मन मुग्ध करती चंद्रिका।

तन सितारों से सजाकर, भू पे उतरी चंद्रिका।

 

चाँद ने जब बुर्ज से, झाँका भुवन की झील में,

झिलमिलाती साथ आई, सर्द सजनी चंद्रिका।

 

पात झूमें, पुष्प हरषे, रात ने अंगड़ाई ली,

पाश में ले हर कली को, चूम चहकी चंद्रिका।

 

घन घनेरे, आसमाँ से, छोड़ डेरा छिप गए,

जब धरा पर शीत बदली, बन के बरसी चंद्रिका।

 

पर्वतों से, वादियों से, पाख भर मिलती रही,

सागरों की हर लहर से, खूब खेली चंद्रिका।

 

प्राणियों में प्रेम बोया, हर किरण से सींचकर,

प्रेमियों सँग गुनगुनाई, रात रानी चंद्रिका।

 

हर कलम की बन ग़ज़ल, शब भर सफर करती रही,

शबनमी प्रातः में चल दी, भाव भीगी चंद्रिका।

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामानी

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Comment by कल्पना रामानी on December 3, 2013 at 5:56pm

आदरणीय चंद्रशेखर जी, हार्दिक धन्यवाद आपका

Comment by कल्पना रामानी on December 3, 2013 at 5:55pm

आदरणीय गिरिराज जी, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on December 3, 2013 at 5:54pm

प्रिय गीतिका जी, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on December 3, 2013 at 5:54pm

आदरणीया, कुंती जी हार्दिक धन्यवाद  

Comment by कल्पना रामानी on December 3, 2013 at 5:53pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 5:30pm

कल्पना जी

अतीव सुन्दर --- चन्द्रिका

बड़ा ही कमनीय वर्णन i  आपको भूरि भूरि बधाई i

Comment by coontee mukerji on December 3, 2013 at 4:47pm

बहुत सुंदर रचना मन मुग्ध हो गया.कल्पना जी. हार्दिक बधाई.

Comment by वेदिका on December 3, 2013 at 2:36pm

बहुत खूब, मनमोहक सुकोमल प्रस्तुति हुयी है! गज़ल पर हार्दिक शुभकामनायें आ० कल्पना दी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 2:07pm

आदरणीय कल्पना जी , बहुत सुन्दर रचना , आपको ढेरों बधाई !!!!

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 2, 2013 at 11:44pm

सुन्दर चित्र खींचा है आपने आदरणीया, हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

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