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"देखो-देखो दमयंती, तुम्हारे शहर के कारनामे!! कभी कोई अच्छी खबर भी आती है, रोज वही चोरी, डकैती ,अपहरण ...और एक तुम हो कि शादी के पचास साल बाद भी मेरा शहर मेरा शहर करती नहीं थकती हो अब देखो जरा चश्मा ठीक करके टीवी में क्या दिखा रहे हैं" कहते हुए गोपाल दास ने चुटकी ली।
"हाँ-हाँ जैसे तुम्हारे शहर की तो बड़ी अच्छी ख़बरें आती हैं रोज, क्या मैं देखती नहीं थोडा सब्र करो थोड़ी देर में ही तुम्हारे शहर के नाम के डंके बजेंगे" दादी के कहते ही सब बच्चे हँस पड़े और उनकी नजरें टीवी स्क्रीन पर गड़ गई।
साल के अंतिम सप्ताह में वार्षिक रिपोर्ट में सभी शहरों की वारदातें ,उपलब्धिया चल रही थी अतः उनके कौतुहल का ये रोज मर्रा का विषय था जो दादा-दादी के आदेशानुसार हिसाब भी रखते थे कि किसके शहर की आज अच्छी खबर आई है ।
तभी स्क्रीन पर दादा जी के शहर का नाम उभरा---- इस शहर में इस वर्ष ऐड के मरीजों की संख्या घट कर कुल इतनी रह गई है,दादा जी ने बच्चो से दृष्टि बचाकर दादी की तरफ गर्वीली मुस्कान के साथ देखा।
कुछ और शहरों के लेखा-जोखा दिखाने के बाद फिर दादा जी के शहर का नाम आया तो सबके कान खड़े हो गए ...अभी-अभी एक मुख्य सूचना मिली है कि इस शहर में नाबालिग के साथ बलात्कार की तीन दिनों में एक आठवीं वारदात को अंजाम दिया गया है। सुनते ही कमरे में सन्नाटा छ गया। तेरह वर्षीया गुड्डी नीची नजरे किये चुपचाप कमरे से बाहर आ गई।

****************************************************

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on December 3, 2013 at 7:58pm

आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी कहानी के मर्म को महसूस कर दी गई आपकी प्रतिक्रिया से हर्षित हूँ मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका ,आपकी बात शत प्रतिशत सही है मीडिया अपना फायदा पहले सोचती है. 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 3, 2013 at 5:26pm

जैसे ही कमरे में सन्नाटा छाया और गुड़ियां बाहर गई, खामोशी के साथ ही सार्थक लघुकथा का भी अंत हो गया | 

ऐसे में मुहं में ताला लग जाता है, कलम भी रुक जाती है, कहानी चरम पर सफल हो गयी, इसके लिए हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 4:27pm

राजेश कुमारी

 आपकी लघु कथा में व्यंग्यार्थ छिपा हुआ है i

वही इस रचना की जान हैं i शुभेच्छा  i

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 4:18pm

आ. राजेशकुमारीजी आप तो अपने उद्देश्य में सफल रहीं , हार्दिक बधाई । लेकिन न्यूज चैनल वाले टी आर पी के चक्कर में उन अनावश्यक समाचारों को बार-बार दिखाते हैं जिसे सपरिवार देखना असहज हो जाता है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2013 at 12:21pm

आदरणीय विजय मिश्र जी एक पाप/अपराध  कम होता है तो उसकी आड में दूसरा जन्म ले लेता है क्या करें  क्या न करें अख़बार टीवी इन्ही न्यूज से भरे पड़े हैं,आपकी प्रतिक्रिया से हर्षित हूँ हार्दिक आभार आपका.   

Comment by विजय मिश्र on December 3, 2013 at 12:12pm
राजेशजी , आपकी अंतिम पंक्ति ही समारूप है आपकी इस चुहलबाजी में उत्पन्न असीम व्यथा का . इसपर टिप्पणी क्या करूँ ? शहरों का नहीं ,गाँव से लेकर समूचे देश तक यह समरूप है . अभिव्यक्ति सराहनीय .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2013 at 10:20am

जितेन्द्र गीत जी कहानी आपको सन्देश परक लगी हार्दिक आभार ,आपने सही कहा ऐसी न्यूज आजकल बच्चों के साथ बैठ कर देखनी भी असहनीय हो गई किन्तु उनको बुरा भला भी हम को ही सिखाना है न्यूज के माध्यम से ही बच्चों के साथ बातचीत करके उन्हें सही रह दिखानी है ये बहुत जरूरी है ,दूसरे इस कथा का मूल मुद्दा मैं आदरणीय सौरभ जी के उत्तर में लिख चुकी हूँ आप पढेंगे तो ये मर्म स्पष्ट होगा जिसको केन्द्रित करके ही इस कहानी को लिखा है,मुझे लगता है पाठक गण इस मर्म को नहीं पकड़ पा रहे हैं या मैं कहने में असफल रही हूँ   


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Comment by rajesh kumari on December 3, 2013 at 10:10am

प्रिय रामशिरोमणि जी इस उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2013 at 10:09am

चन्द्र शेखर पाण्डेय जी लघुकथा के मर्म को महसूस कर दी गई प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ,हाँ टंकण त्रुटी आई है एड्स शब्द में जिसमे लापरवाही हुई है  ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक आभार.  


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Comment by rajesh kumari on December 3, 2013 at 10:04am

आदरणीय सौरभ जी लघु कथा पर आपकी प्रतिक्रिया शिरोधार्य है ,इस लघु कथा के माध्यम से जो एक गहन मुद्दा है कि अखबारों के सर्वे के आधार पर कुछ देशों में जिसमे इण्डिया भी है एड्स  के मामले तो घट रहे हैं वहीँ चौंकाने वाली बात सामने आई है कि उन्ही देशों में नाबालिगों के साथ बलात्कार बढ़े हैं ये एक शोचनीय विषय है जिसकी और ध्यान आकर्षित करना ही इस कथा का मूल उद्देश्य था शायद मेरा प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हो पाया दूसरा सन्देश ये था कि बुजुर्ग लोग बच्चों में टीवी देखने के लिए उनमे न्यूज़ देखने की आदत रोचकता पैदा करें और ये बात  मैंने अपने घर से ही सीखी थी ,बस यही सब इस कहानी के माध्यम से कहना चाहती थी  

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