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सृजन-सृजन (अतुकांत) ...............डॉ० प्राची

शब्द तरंगहीन 
      गहनतम 
      सान्द्रतम 
      और 
      निर्बाध उन्मुक्तता में अवस्थित
      विलगता-विलयन के 
      सुलझे तारों पर स्पंदित
मन का अंतर्गुन्जन... / मदमस्त
जब चुन बैठे कोई स्वप्न 
और 
नियति 
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता 
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में 
खेलते है  ..सृजन-सृजन !

(मौलिक और अप्रकाशित) 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 27, 2013 at 9:40pm

आदरणीया प्राची जी , बहुत कठिन विषय  को आपने चुना है , परम रचना कार किन मनः स्थितियों मे रचना करता है !! कल्पनातीत विषय है !!! आपकी  सोच की सीमाओं को प्रणाम !!!! बहुत लाजवाब रचना !!! तहे दिल से बधाई !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 27, 2013 at 9:21pm

वाह्ह्ह अनुपम सृजन बहुत सुन्दर ,बधाई आपको प्रिय प्राची जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 27, 2013 at 7:30pm

प्राची जी

आपके शब्दों का चयन  विमुग्धकारी है i

सृजन किन अनुभुतियो का परिणाम है और

उसमे नियति किस प्रकार विलयित  है 

यह आपने  अपनी  अद्भुत शब्द-शक्ति से

प्रमाणित किया है i मै आपके ह्रदय- मार्दव

को प्रणाम करता हूँ आदरणीया i माननीया

Comment by Neeraj Nishchal on November 27, 2013 at 5:42pm

इतने अनन्त भावों को इतने कम शब्दों में समेट लेना सचमुच में
एक बहुत बड़ी प्रतिभा का परिचायक है ,
बहुत बहुत ह्रदय से बधाई इस अनूठे सृजन के लिए
आदरणीया प्राची जी ।

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