For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यर्थ प्रपंचन छोड़कर,मीठी वाणी बोल! 
कर तू खुद ही न्याय अब,अंतर के पट खोल !!

धुआँ धुआँ चहुँ ओर है,घिरी अँधेरी रात !
जुगनूँ फिर भी कर रहा,उजियारे की बात !!

लोगों को क्या हो गया,करते उल्टी बात !
कहें रात को दिवस अब ,और दिवस को रात !!

शब्दों के सामर्थ्य का, ऐसा हो अध्याय।
चले लेखनी आपकी, लिखे न्याय ही न्याय॥

नीति नियम दिखते नहीं ,भ्रष्ट हुए सब तंत्र !
जिसे देखिये रट रहा ,लोलुपता का मंत्र !!

जानबूझकर क्यों मनुज ,करते हो तुम भूल !
चुभने वाली हैं यही ,तुमको बनकर शूल !!
********************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक /अप्रकाशित

Views: 936

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 8:38pm

सुंदर दोहवली ! बहुत बधाई आपको । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 7:58pm

धुआँ धुआँ चहुँ ओर है,घिरी अँधेरी रात !
जुगनूँ फिर भी कर रहा,उजियारे की बात !! बहुत ही सुन्दर दोहा आदरणीय राम भाई

बाकी गुरुजन कह चुके हैं ...........सादर बधाई

Comment by बृजेश नीरज on November 28, 2013 at 7:22pm

आदरणीय राम भाई, बहुत ही सुन्दर दोहे हैं. आपको हार्दिक बधाई!

पांचवें दोहे में 'नीति' की जगह 'निति' क्यों लिखा स्पष्ट नहीं हो रहा.

तीसरे चरण में 'देखते' सही नहीं लगता. मेरे हिसाब से 'देखिये' होना चाहिए 

वैसे आप स्वयं समझदार हैं.

सादर!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 28, 2013 at 4:11pm

जय हो, लगे रहें, आपकी दोहावली धीरे-धीरे धुल रही है

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 10:53am

बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्षमण जी। । सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 28, 2013 at 10:29am

सुंदर सीख देते दोहों के लिए बधाई श्री राम भाई -

फैशन में है आजकल, करना उलटी बात, 

कहते दिन को रात अब,कैसे सुखद प्रभात 

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 12:37am

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी आपके इन अमूल्य सुझावों का मै ह्रदय से स्वागत करता हूँ,  … ऐसे  ही मार्गदर्शन करते रहे आदरणीय। । सादर प्रणाम    

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 12:36am

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज  जी ,,,,,सादर 

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 12:35am

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई रमेश  जी ,,,,,सादर 

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 12:34am

बहुत बहुत आभार आदरणीय गोपाल   जी ,,,,,सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
10 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service