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रेत का घरौंदा....................... ( अन्नपूर्णा बाजपेई )

समंदर किनारे रेत पर

चलते चलते यूं ही

अचानक मन किया

चलो बनाए

सपनों का सुंदर एक घरौंदा

वहीं रेत पर बैठ

समेट कर कुछ रेत

कोमल अहसास के साथ

बनते बिगड़ते राज के साथ

बनाया था प्यारा सा सुंदर 

एक घरौंदा................

वही समीप बैठ कर

बुने हजारों सपनो के

ताने बाने जो

उसी रेत की मानिंद

भुरभुरे से ,

हवा के झोंके से उड़ने को बेताब

प्यारा घरौंदा ..............

अचानक उठी लहर

बहा ले गई वो

प्यारा सुंदर घरौंदा

जिसको सींचा था

सहलाया था , प्यार से

दुलराया था

बिखरे पड़े उन अवशेषों को

समेट फिर चल दी

उन्हे दुबारा सवारने की खातिर

प्यारा सा सपनों का घरौंदा..................

जो शायद सपने ही है

जो कभी सच होते है

कभी नहीं भी

मन की संकरी गलियों मे

यूं ही घुमड़ते हुए बादल से

सपने .............

रेत के घरौंदे ही तो है ...................... ।

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

अन्नपूर्णा बाजपेई

Views: 859

Comment

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Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 5:21am

सपनों की सत्यता लिए हुए इन भावों के लिए हार्दिक बधाई आ0 अन्नपूर्णा जी....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 13, 2013 at 10:45pm

आदरणीया अन्नपूरणा जी , सपनो की सच्चाई बताती आपके सुन्दर रचना के लिये आपको बहुत बधाई !!!!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 13, 2013 at 10:18pm

अन्नपूर्णाजी

सपने ही सपने कब हुए अपने भोर हुयी और टूट गए कुछ चलें सपनो से आगे

आपकी प्रस्तुति मोहक है

कृपया ध्यान दे...

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