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लोभ कपट को त्यागकर ,रखो परस्पर नेह !
शुद्ध विचारों से करो ,शीतल अपनी देह !!१

याचक भी राजा बना ,राजा मांगे भीख !
काल चक्र से भी तनिक ,ले लो भाई सीख !!२

इतना तुम क्यूँ रो रहे ,भाई घोंचू लाल !
किसने पीटा आपको ,गाल दिखे हैं लाल!!३

अधर तुम्हारे पुष्प से ,मेरे प्यासे नैन !
जिस दिन तुम दिखती नहीं ,रहता हूँ बेचैन !!४

उन्हें देख जलने लगा ,मन का बुझा चिराग !
शनै: शनै: अब फैलती ,पूरे तन में आग !!५

विरह आग में जल रही ,नयनों में था नीर !
अपलक राह निहारती ,विरहन तृषित अधीर !!६

चंचलता जिसमें भरी ,खुजली करता जाय !
वानर का बस काम ये, छीन झपट कर खाय !!७
*********************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on October 27, 2013 at 3:26pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई विशाल जी //सादर 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 1:32pm

वाह - वाह.....हर दोहा अर्थपूर्ण एवं सुन्दर..... हार्दिक बधाई भाई !!!

Comment by ram shiromani pathak on October 27, 2013 at 10:46am

बहुत बहुत आभार आदरणीय शुशील जी,खिचड़ी आपको पसंद आई तो मेरा बनाना भी सफल हुआ ///सादर 

Comment by Sushil.Joshi on October 27, 2013 at 5:29am

वाह वाह आ0 राम भाई.... बहुत शानदार खिचड़ी बनाई है आपने विभिन्न भावों को समेटे इन दोहों का सम्मिश्रण कर........... आनंद आ गया..... हार्दिक बधाई हो आपको....

Comment by ram shiromani pathak on October 26, 2013 at 6:40pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी, //सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 26, 2013 at 6:38pm

आदरणीय राम  भाई , बहुत सुन्दर  दोहावली की रचना की है आपने !!!  सच मे खिचड़ी का मिला जुला स्वाद है !!!! बधाई !!!!

Comment by ram shiromani pathak on October 26, 2013 at 5:05pm

 बहुत बहुत आभार आदरणीय  विजय मिश्रा  जी, //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on October 26, 2013 at 5:04pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय  अखिलेश   जी, //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on October 26, 2013 at 5:04pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया सरिता  जी, //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on October 26, 2013 at 5:03pm

अनुमोदन  के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई जीतेन्द्र जी, //सादर 

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