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वेदना (रवि प्रकाश)

वितान चाँदनी बुने न रात हो सुहावनी,
न बोलते विहंग हों न भोर हो लुभावनी।
बहार की पुकार पे हवा न गीत गा सके,
विमुक्तकण्ठ कोकिला न रागिनी सुना सके।

विलास हो न हास हो उदास हो वसुंधरा,
हताश अंतरिक्ष हो महान मौन से भरा।
वसंत की सुगंध में घुला हुआ विषाद हो,
बयार में,फुहार में विलाप का निनाद हो।

न प्रीत की परंपरा न गीत हो प्रयाण का,
उमंग की तरंग हो न संग हो कृपाण का।
जले न दीपमालिका न इष्ट देवता मिले,
न इन्द्रचाप सी कभी सुदर्श कल्पना खिले।

न याचना भविष्य की अतीत की उपासना,
न रंग की सजावटें न रूप का उलाहना।
न कामना उतावली घड़ी-घड़ी छला करे,
न चित्त के प्रदेश में सुहासिनी पला करे।

इसीलिए दरिद्रता ललाट पे सजी रहे,
कवित्त की तरंगिणी न रंगरेल से बहे।
सदैव वेदने, तुझे सयत्न मैं सँभालता,
विनीत हो प्रगीत में रहूँ सदा पुकारता।

मौलिक व अप्रकाशित।

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 18, 2013 at 9:51am

बहुत सुंदर शब्द चयन, मन की वेदना को उकेरती अनुपम रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय रवि जी

Comment by Ravi Prakash on October 18, 2013 at 9:22am
आ॰ निगम जी, आपको रचना अच्छी लगी, जान कर मन को असीम आनंद प्राप्त हुआ। स्नेह बनाए रखें।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 18, 2013 at 8:46am

आदरणीय रवि प्रकाश जी, कविता में शब्द चयन और प्रवाह देखते ही बन रहा है, वेदना मुखरित हुई,  बधाइयाँ...........

Comment by Ravi Prakash on October 18, 2013 at 7:09am
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आ॰ सौरभ जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 18, 2013 at 1:19am

जब शिव स्वरूप हो गये, तो राख क्या शृंगार क्या..  !!
इन पंक्तियों के माध्यम से आपकी इस उत्कृष्ट पंचचामर छंद रचना को साधुवाद कह रहा हूँ.

वेदनाएँ यदि अभिव्यक्त हुईं तो अति क्लिष्ट वातावरण का निर्माण करती हैं. रचनाकर्म जिस मनोदशा से आप्लावित है वह सकारात्मकता का कारण प्रसूत करे, अपेक्षा है. और सुखद है कि यही हो रहा है. 
शुभ-शुभ

Comment by Ravi Prakash on October 17, 2013 at 9:32pm
धन्यवाद जोशी जी।
Comment by Sushil.Joshi on October 17, 2013 at 9:26pm

वाह.... बेहद सुंदर एवं प्रवाहमयी गीत....... सुंदर कामना करती हुई इस रचना के लिए हार्दिक बधाई हो आपको.....

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