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कुण्डलिया (हाय री किस्मत्)

हाय री किस्मत्

देखो सारे कर रहे, दूजा इन्क्रीमैंट,

अपना पिछले वर्ष का, बाकी है पेमैंट।

बाकी है पेमैंट, करो मत जल्दी-जल्दी,

कई ‘अटल’ हैं हाय, चढ़ानी जिनको हल्दी।

कह ‘जोशी’ कविराय, सभी किस्मत के मारे,

खाते लंगर भात, आजकल देखो सारे।

------------------------------------ सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 790

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Comment by Pradeep Kumar Shukla on October 9, 2013 at 11:35am

waah .. bada sundar bana hai aapka kundali chhand

 

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 9, 2013 at 11:27am


       आदरणीय सुशील जोशी जी बहुत सुन्दर कुंडली बनाई है आपने । सरकारी  कर्मचारियों  की  प्रायः यही हालत रहती है । क्या करें बिना हल्दी चढ़ाए रंग भी तो चोखा नहीं आ  पाता। बहुत-बहुत  बधाई आपको   । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 9, 2013 at 10:48am

बहुत सुन्दर छंद रचना के लिए बधाई भाई शुशील जोशी जी -

महंगाई का दौर है, खाते लंगर भात 

धन्यवाद सबसे करे, लगे रहे दिन रात | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 9, 2013 at 10:02am

क्या बात है आदरणीय सुशीलजी ! बहुत बढ़िया कुण्डलिया रची है आपने, बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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