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कुण्डलिया (बीवी बनाम् शेरनी)

जंगल भागी शेरनी, ख़बर छपी अखबार।

फौरन फोन घुमाइए, नज़र पड़े जो यार।।

नज़र पड़े जो यार, पड़े हम भी चक्कर में,

कर डाला झट फोन, उसी पल चिड़ियाघर में।

यहाँ शेरनी एक, करे जो मुझसे दंगल,

'उसे' ढूँढने जाय, इसे तब छोड़ो जंगल।

----------------------------------- सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:14pm

जी हाँ आदरणीय रमेश भाई.... सही कहा...हा..हा...हा.... सादर धन्यवाद...

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:14pm

हा..हा..हा.... आदरणीय गणेश बागी भाई जी.... यह सच है कि काफी दिनों के बाद मेरा यहाँ आना हो रहा है.... लेकिन सच्चाई यही है कि आप सब के बिना रह भी नहीं पाता हूँ.... बस समय एवं कार्य के हाथों विवश हूँ.... फिर भी जब भी समय निकालता है तो कोशिश रहती है कि अपने अग्रजों एवं अनुजों के बीच यहाँ पर आऊँ एवं कुछ सीखूँ.... स्नेहिल टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद...

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:10pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय अरुन भाई... क्या बात है... आपकी टिप्पणी अब पढ़ रहा हूँ और शब्दों का यही फेरबदल मैंने पहले ही कर दिया है... जब आदरणीया राजेश जी की पहली टिप्पणी पढ़ी..... आपको रचना पसंद आई उसके लिए अतिश: धन्यवाद..

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:08pm

हार्दिक धन्यवाद आपका बृजेश जी....

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:07pm

उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धऩ्यवाद आदरणीय गिरिराज जी....

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:06pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी... वैसे आपका परामर्श मैं अब देख रहा हूँ.... मैंने केवल आपका पहला कमैंट पढ़ते ही गलती सुधार ली थी और उसे पोस्ट भी कर दिया था.... लेकिन आपका परामर्श तो और भी शानदार है.... और शायद सच्चाई भी.... हा...हा...हा.... हा.... अरे मुझे ज्यादा नहीं हँसना चाहिए.... शेरनी ने सुन लिया तो.......

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:03pm

हा...हा.... सही कहा आदरणीया राजेश कुमारी जी.... यहाँ तो रोज ही शेरनी से पंगा लेता हूँ..... हा...हा...हा.... और छंद में गड़बड़ी की ओर ध्यान दिलाने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद..... भूलवश ऐसा हुआ जिसे सुधार लिया गया है....

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 2, 2013 at 8:01pm

हास्य की जमीन स्वयं/स्वयं का घर ही होता सो शेरनी घर में हास्य रूप में दहाड रही है । बहुत ही सुंदर हास्य के लिये बधाई


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 4:55pm

वाह भाई सुशील जी, बहुत दिनों बाद आना हुआ और आते ही सिक्सर,बढ़िया है, बधाई आदरणीय । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 2, 2013 at 1:01pm

आदरणीय सुशील भाई बेहद सुन्दर हास्यप्रद कुण्डलिया छंद रचा है आपने दिल खुश हो गया भाई जी आदरणीया राजेश जी ने उचित कहा है यहाँ शेरनी एक करने से गेयता ठीक हो जाएगी ऐसा मुझे लगता है. इस सुन्दर हास्यप्रद कुण्डलिया छंद हेतु बधाई प्रेषित है स्वीकार करें.

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