For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेमेल बंधन ..................डॉ० प्राची

अविश्वास !

प्रश्नचिन्ह !

उपेक्षा ! तिरस्कार !

के अनथक सिलसिले में घुटता..

बारूद भरी बन्दूक की

दिल दहलाती दहशत में साँसे गिनता..

पारा फाँकने की कसमसाहट में

ज़िंदगी से रिहाई की भीख माँगता..

निशदिन जलता..

अग्निपरीक्षा में,

पर अभिशप्त अगन ! कभी न निखार सकी कुंदन !

इसमें झुलस

बची है केवल राख !

....स्वर्णिम अस्तित्व की राख !

और राख की नीँव पर

कतरा-कतरा ढहता  

राख के घरौंदे सा

बेमेल बंधन ! 

Views: 953

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रविकर on September 13, 2013 at 9:21am

....स्वर्णिम अस्तित्व की राख !--

 बहुत बहुत बधाई आदरणीया ||

Comment by Abhinav Arun on September 13, 2013 at 5:46am

अनुभूतियाँ गहन से गहनतम होती जातीं .....जीवन का गूढ़ ..सामाजिक तिलस्म .... ह्रदय का ज्वार ...और बहाव के साथ ठहराव ...कितना कुछ बखूबी समेटा सृजित किया है आपने आदरणीया ह्रदय से साधुवाद और शुभकामनायें आपको !!

Comment by वेदिका on September 13, 2013 at 2:29am

बेमेल है तो ही तो बंधन है .....मेल होता तो ....

बहुत बहुत शुभकामनायें आदरणीया प्राची दीदी!!

Comment by vijay nikore on September 13, 2013 at 2:19am

बहुत गूढ़ , गंभीर चिंतन से सराबोर, मन को छूती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई।

विजय

Comment by Meena Pathak on September 13, 2013 at 1:10am

क्या कहूँ .. मेरे पास कोई शब्द नही है .. निःशब्द हूँ ...

जीवन का श्राप बन जाता है कभी कभी ये बेमेल बंधन ...............इस अनमोल रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें आ० प्राची जी

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 13, 2013 at 12:01am

...स्वर्णिम अस्तित्व की राख !

और राख की नीँव पर

कतरा-कतरा ढहता  

राख के घरौंदे सा

बेमेल बंधन ! ...........बहुत ही गहरे भाव

सुंदर रचना पर बहुत बहुत बधाई आदरणीया डा. प्राची जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2013 at 11:36pm

निःशब्द हूँ.

...................

ख़ैर,

सहअस्तित्व-साहचर्य ही वह तिनका है जो जीवन की मँझधार में दो ध्रुवों के समुच्चय को एकरस होने का निश्चय और निष्ठा देता है.  इस तिनके का अस्तित्व ही पार पाने की आश्वस्ति है. इस आश्वस्ति में तनिक लोच मँझधार की भयावहता को बहुगुणित कर देता है जिसका एक प्रतिफल जीवनधारा में बहुतायत में प्राप्त भँवरों में लगातार उलझना और फिर निश्चित डूबना ही है.

अवश्य प्रतीत होते इस डूब से समुच्चय को बचाती, जीवनधारा में एकसार बहती कोई इकाई अंततः कितना एकाकी जीये ?

इस विवशता को जीती हुई प्रस्तुत कविता के लिए आपको बार-बार नमन.

गहनता को कितना ठोस आधार मिला है, कि भावनाओं की शृंखलाएँ बनती चली गयी हैं. बहुत-बहुत बधाई आदरणीया प्राचीजी.

सादर

Comment by annapurna bajpai on September 12, 2013 at 10:56pm

अग्निपरीक्षा में,

पर अभिशप्त अगन ! कभी न निखार सकी कुंदन !

इसमें झुलस

बची है केवल राख !

....स्वर्णिम अस्तित्व की राख !

और राख की नीँव पर

कतरा-कतरा ढहता  

राख के घरौंदे सा

बेमेल बंधन !  .....................................  सुंदर पंक्तियाँ , बहुत बढ़िया आ0 प्राची जी । इस रचना हेतु बधाई स्वीकारें । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 12, 2013 at 10:19pm

अभिव्यक्ति पर उत्साहवर्धक अनुमोदन के लिए सादर आभार आ० अनुराग जी , आ० सरिता भाटिया जी, आ० गिरिराज भंडारी जी, आ० अखिलेश जी, आ० दिलीप जी, आ० परवीन जी 

Comment by Parveen Malik on September 12, 2013 at 9:48pm
बेहतरीन शब्द संयोजन प्राची जी .... सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
16 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
2 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service