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देख तिरंगा लहराता

मन उठा, भ्रमर सा जागा है

 

पुलकित सूरज की किरनें

रंग तीन यह जो चमकें

इस मंद हवा की लहरों पर

मन झूम-झूमकर गाता है

 

सोंधी खुशबू माटी की

अलकें खिलतीं फूलों की

खेतों में लहराती फसलें

अब उमग-उमग मन जाता है

 

जीवन मेरा धन्य हुआ

भारत में जो जन्म हुआ

ये प्राण निछावर हैं इस पर

यह धरती अपनी माता है

.

बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment

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Comment by Ashish Srivastava on September 6, 2013 at 11:07am

आदरणीय ब्रजेश जी बधाई सुन्दर रचना रचने के लिए 

Comment by Shyam Narain Verma on September 6, 2013 at 11:01am
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

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