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इन नदियों की पीठ पर लहरें /जाने क्‍या-क्‍या लिखती है

इन नदियों की पीठ पर लहरें

जाने क्‍या-क्‍या लिखती है

 

मतपत्रों से

रिसते वादे

निठुर वंचना

हेठ इरादे

नारों की

नीली पगडंडी

और पुनर्मिलन

के वादे

या फिर

मत देने से पहले

पाई कालिख लिखती है

 

इन नदियों ...............

 

नित्‍य पथिक जो

बने पर्यटक

कहां फिरे

उस राह आजतक

और सुलगते

खेतों में जब

उगी फसल

कुछ हिंस्‍त्र दूर तक

संगीनों की वही कहानी

रोज नहीं क्‍या लिखती है ?

 

इन नदियों ...............

 

खटे मेघ

जी भर के फिर से

इन उजड़े

वीरानों में

देखें अबके

क्‍या मिलता है

लुटे-पिटे अरमानों में

ध्‍यान मग्‍न यह

धारा भी तो

कीर्तन सा कुछ लिखती है

 

इन नदियों ...............

 

(पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 707

Comment

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Comment by D P Mathur on June 18, 2013 at 8:00am

मतपत्रों से
रिसते वादे
निठुर वंचना
हेठ इरादे
बहुत ही सटीक कटाक्ष
करती आपकी प्रस्तुति ।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2013 at 10:12pm

आ0 राजेश भाई जी,
नित्‍य पथिक जो
बने पर्यटक
कहां फिरे
उस राह आजतक
और सुलगते
खेतों में जब
उगी फसल
कुछ हिंस्‍त्र दूर तक
संगीनों की वही कहानी
रोज नहीं क्‍या लिखती है ?
लाजवाब, अतिशय सुन्दर नवगीत।....तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 17, 2013 at 10:06pm
आदरणीय..राजेश जी, सुंदर रचना..अभिव्यक्ति! शुभकामनाऐं
Comment by vijay nikore on June 17, 2013 at 8:38pm

अति सुन्दर, राजेश जी।

सादर,

विजय निकोर

Comment by coontee mukerji on June 17, 2013 at 8:28pm

खटे मेघ

जी भर के फिर से

इन उजड़े

वीरानों में

देखें अबके

क्‍या मिलता है

लुटे-पिटे अरमानों में

ध्‍यान मग्‍न यह

धारा भी तो

कीर्तन सा कुछ लिखती है..........समय की अराजकता का सुंदर चित्रण .राजेश जी रचना की जितनी तारीफ़ की जाए कम है.सादर / कुंती .

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