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ये आदत अच्छी नही तुम्हारी

ये आदत अच्छी नही तुम्हारी
मेरा दिल जलाने की
तुम्हारा ही घर जलता है
आदत से बाज आ जाओ ....

न सुनते हो न समझते हो
बिना बात के मुझ पर बरसते हो
तुम्हारा ही चैन खोता है
आदत से बाज़ आ जाओ

यूँ आँखे क्यों दिखाते हो
यूँ मुझको क्यों  डराते हो
तुम्हारा ही रूप बदलता है
आदत से बाज़ आ जाओ

यूँ मुझसे नज़रे क्यों चुराते हो
मुझे इतना क्यों तडपते हो
तुम्हारा ही दिल तड़पता है
आदत से बाज़ आ जाओ .....!!!!!



मौलिक व अप्रकाशित रचना





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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2013 at 9:39am

जिनको कहा गया वे सुनें न सुनें, हम सभी अवश्य सुन रहे हैं.. .. :-))

और सुन कर यही कहना है..  

मेहनत करते रहें .. और इस मंच पर विधाओं से सम्बन्धित कई अच्छे आलेख हैं. उन्हें मनोयोग से खूब पढ़ें.

शुभेच्छाएँ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 7, 2013 at 9:06am

अच्छी सीख देती अभ्व्यक्ति के लिए बधाई 

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 1:08am

बढ़िया लयात्मक नसीहत है ...
बधाई

वैसे अगर आदत है तो एक दिन में कहाँ बदलेगी ... हा हा हा

Comment by MAHIMA SHREE on June 6, 2013 at 10:45pm

प्रिय सोनम जी .. कई सी हैं ?

किसकी बजा डाली J)..

बढियां है..:)))-

Comment by वेदिका on June 6, 2013 at 7:51pm
बढ़िया फटकार सोनम जी! 
बाज आजाये तब तो बात बने ...घर जलने की परवाह किसको है !!!
आदत से बाज आजा ओ // के बजाये बाज आदत से आजा ओ कहे तो कैसा रहे ? मत से अवगत कराईये 
शुभकामनायें 
Comment by Abid ali mansoori on June 6, 2013 at 6:25pm
आदरणीय सोनम जी अच्छी रचना,बधाई स्वीकार करेँ!

कृपया ध्यान दे...

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