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इन्कलाब //कुशवाहा //

क्या है 

इन्कलाब 
नहीं जानता 
शायद आप जानते हों 
हिंदी उर्दू अरबी फारसी 
लब्ज तो नहीं 
पञ्च तत्व 
पञ्च इन्द्रियां 
पञ्च कर्म 
या 
मुर्दा कौमों की 
संजीवनी बूटी ?
बस इतना जानता हूँ 
हाथ नहीं  पंजा नही 
एक बंधी मुट्ठी 
आशाओं को समेटे हुए 
आसमान को भेदते हुए 
सीने में दफ्न 
एक आग 
एक ललक 
हद से गुजर जाने की 
सीना तान 
बुलंद आवाज 
मेहनतकश 
मजदूर और जवान 
इन्कलाब जिंदाबाद 
कहता है 
इसके अस्तित्व का 
एहसास होता है 
इन्कलाब 
कहीं खुदा तो नहीं 
जो सब देता है ?
---------------------------------------------
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 
३-५-२०१३ 
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 580

Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 3, 2013 at 9:12pm

आ0 कुशवाहा जी, ’’इन्कलाब
कहीं खुदा तो नहीं
जो सब देता है?’’ वाह सर जी, अतिसुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by coontee mukerji on May 3, 2013 at 8:39pm
मुर्दा कौमों की 

संजीवनी बूटी ?

बस इतना जानता हूँ 

हाथ नहीं  पंजा नही 

एक बंधी मुट्ठी 

आशाओं को समेटे हुए...........बहुत सुंदर / सादर /कुंती .

Comment by manoj shukla on May 3, 2013 at 6:14pm
सुन्दर रचना .... बधाई स्वीकार करें आदर्णीय
Comment by Shyam Narain Verma on May 3, 2013 at 12:51pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

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