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सांप नाथ -नाग नाथ उवाच //कुशवाहा //

सांप नाथ -नाग नाथ उवाच 

---------------------------------

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी 

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

कैसे आती है 

खून बहे रक्त नली में 

तारे टिमके जैसे जमी पर  

प्रेमियों को भाती है

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी

--------------------

न आये तो क्या हो  करते

रात गुजर  कैसे  करते

जनता त्राहि त्राहि करती 

खेती किसानी करते डरती 

हमको  भी तो बतलाओ 

झूठ है या सच है बाती 

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी 

------------------

अपराधियों को खूब फब्ती   

गली सडक चौराहे पर 

मोमबत्तियां  हैं जलती 

राष्ट्र हित में उर्जा  बचती 

देता सब कोई  बधाई 

सुन लो अब मेरे भाई 

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी

---------------------

इतनी महंगी है क्यों फिर 

लोड टैरिफ लगे  है सिर

कम्पनी घाटे में दिखती 

रात अँधेरे में  कटती 

कैसी है बेशर्मायी 

मिल काटते नित मलाई 

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी

---------------------

बिजली का बिल वे न भरते

कटिया  कनेक्शन घर सजते 

कसो आन्दोलन करते 

बिल तुम्हारा भी तो बाक़ी 

स्टाफ संग क्या सगाई 

बिजली मंत्री हूँ भाई 

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

४-५-२०१३ 

मौलिक /अप्रकाशित 

 

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2013 at 1:50pm

आदरनीय त्रिवेदी जी 

स्नेह हेतु सादर आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2013 at 1:49pm

आदरणीया उषा जी 

सादर 

स्नेह हेतु आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2013 at 1:48pm

आदरनीय श्याम नारायण वर्मा जी 

सादर आभार 

स्नेह बनाये रखिये 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2013 at 1:46pm

प्रिय केवल प्रसाद जी 

सस्नेह आभार 

सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2013 at 1:45pm

सादर आभार 

आदरणीय मनोज जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2013 at 1:43pm

आदरणीया kunति जी 

सादर 

आपको पसंद आया 

आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 29, 2013 at 4:53pm

आदरणीय अनुज श्री अशोक जी 

सादर /सस्नेह 

सही कह रहे हैं आप 

आभार समर्थन हेतु 

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on May 8, 2013 at 10:50am

सुन्दर रचना

Comment by Usha Taneja on May 7, 2013 at 7:06pm

आदरणीय कुशवाहा जी, बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना है. हर तरफ त्राहि-त्राहि. बढ़िया!

पर एक पंक्ति- 'खेती किसानी करते डरती' के शब्दों का उलटफेर करके, मुझे लगता है, कि एक बार फिर से ध्यान दिया जाए तो और भी अच्छी बन जाएगी.

Comment by Shyam Narain Verma on May 7, 2013 at 10:39am
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

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