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गजल : कितनी भला कटुता लिखें

भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?

नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।  

 

नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,

न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।

 

रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर,

अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।

 

पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,

फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।

 

पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा

खोद कब्रें, कर दफन, कोरा कफन टुकड़ा लिखें।

 

हों बहिष्कृत परिजनों से, और धिक्कृत हर गली,

डूब जिसमें खुद मरें वो, शर्म का दरिया लिखें।

 

कब तलक घिसते रहेंगे, रक्त भरकर लेखनी,

हों न वर्धित वंश, उनके नाश को न्यौता लिखें।

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

कल्पना रामानी

Views: 1965

Comment

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Comment by कल्पना रामानी on April 27, 2013 at 9:04am

आदरणीय, अशोक कुमार जी, रचना को अपना स्नेह प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार....

Comment by shashi purwar on April 26, 2013 at 11:41pm

waah bahut khoon kalpana di  sundar gajal ke liye hardik badhai

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 11:15pm

कब तलक घिसते रहेंगे, रक्त भरकर लेखनी,

हों न वर्धित वंश, उनके नाश को न्यौता लिखें।.........बहुत बढ़िया.

आदरणीया कल्पना रामानी जी सादर, सुन्दर परिस्थिति अनुकूल गजल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by Savitri Rathore on April 26, 2013 at 8:51pm

वर्तमान परिस्थितियों का अत्यंत सटीक वर्णन .............परिवर्तन के लिए आन्दोलित करती रचना .........बधाई हो कल्पना जी।

Comment by manoj shukla on April 26, 2013 at 8:19pm
बहुत सुन्दर रचना....हार्दिक अभिवादन स्वीकार करें आदर्णीया
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 26, 2013 at 7:49pm

अद0 रामानी जी,    अति सुन्दर, इन शब्द, भाव, लेखनी को नमन्!  बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by कल्पना रामानी on April 26, 2013 at 5:22pm

राजेश जी, रचना की सराहना के लिए हृदय से धन्यवाद....

Comment by कल्पना रामानी on April 26, 2013 at 5:20pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका....

Comment by कल्पना रामानी on April 26, 2013 at 5:20pm

आदरणीय प्रदीप कुमार जी, रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभार...

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 3:46pm

रक्त को उबालती रचना हेतु 

सादर बधाई. 

आदरणीया रामानी जी 

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