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गुरु वंदन //छंद झूलना (प्रथम प्रयास) ...डॉ० प्राची

छंद झूलना 

(२६ मात्रा,  ७,७,७,५ पर यति , चार पद , अंत गुरु लघु )

गुरु ज्ञान दो, उत्थान दो, वंदन करो स्वीकार 

अनुभव प्रवण, उज्ज्वल वचन, हे ईश दो आधार 

तज काग तन, मन हंस बन, अनिरुद्ध ले विस्तार 

प्रभु के शरण, जीवन- मरण, पाता सहज उद्धार.....

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 26, 2013 at 8:32am

आदरणीय राजेश कुमार झा जी , रचना के भाव व ले प्रवाह की सहजता आपको पसंद आयी यह जान मन उत्साहित है ..हार्दिक आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 7:10am

आदरेया डॉ. प्राची जी सादर बहुत सुन्दर झूलना छंद. आपने रचा भी बहुत सुन्दर है. एक जानकारी और दें, क्या सभी पदों के पहले और दुसरे चरण का तुक भी सामान होना आवश्यक है?

नवीन छंद से परिचय कराने के लिए हार्दिक आभार. और एक सुन्दर झूलना छंद रचाने के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by राजेश 'मृदु' on April 25, 2013 at 5:53pm

नया छंद मेरे लिए, पूरा विधान देकर आपने हमपर बड़ा उपकार किया । प्रभु को निवेदित इस छंद में सहजता लय प्रवाह सबकुछ बहुत ही सुंदर लगा, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 9:17am

प्रिय वंदना तिवारी जी,

रचना के भावों पर आपसे सराहना मिली, इस हेतु हार्दिक आभारी हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 9:16am

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी 

इस  छंद में आपकी रूचि देख मुझे बहुत अच्छा लगा.. आप भी इस पर कलम आजमाएं 

शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 9:14am

आदरणीय गणेश जी, 

प्रभु लो शरण, जीवन -मरण, से हो सहज, उद्धार ..........में गेयता निर्बाध है, अब 'लो' पर जिव्हा का बालाघात बिल्कुल सही लग रहा है.

सादर आभार..

 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2013 at 9:08am

/////क्या इस पंक्ति को // लो प्रभु शरण, जीवन -मरण, से हो सहज, उद्धार // करना सही होगा...?////////

बात कुछ बन रही है , किन्तु अभी भी गेयता जरा सा बाधित है , यदि तनिक हेर फेर कर दिया जाय तो गेयता एक दम से सही हो जायेगी ...

प्रभु लो शरण, जीवन -मरण, से हो सहज, उद्धार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 9:07am

रचना की सराहना के लिए आभार केवल प्रसाद जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 9:07am

आदरणीय विजय निकोर जी 

रचना आपको पसंद आयी और आपका अनुमोदन प्राप्त हुआ इस हेतु हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 8:46am

अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आ० ऊषा तनेजा जी 

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