For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत/ सांस अभी बाकी है

बस आस तुम्हारी बाकी है

इस आंख में आंसू बाकी है

 

जब जब झरनों सी तरूणाई

आ आकर फिर लौटी है

तुम बन करके शीत चुभन

याद तुम्हारी लौटी है

 

मीत मिले दिन बरसों के

बात तुम्हारी बाकी है

वो दिन वो सुमधुर मिलन

अहसास अभी बाकी है

 

न जाने कितनी बार यहां

चांदनी आकर लौटी है

बरसों से बंद दरवाजे की

सांकल फिर से खटकी है

 

आ जाओ मन प्राण बसे

प्यास अब भी बाकी है

टूटे न जीवन डोर कहीं

सांस अब भी बाकी है

              - बृजेश नीरज

Views: 723

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 24, 2013 at 9:06pm

आदरणीय बृजेश जी ,

नवगीत विधा मैं भी अभी सीख ही रही हूँ... इस प्रकार की सार्थक परिचर्चा अवश्य ही ज्ञान को विस्तार देगी, ऐसी मंगल कामना है..

आप द्वारा सीमाजी के आलेख से उद्धृत उदाहरण की मात्रा गणना पर एक बार गौर कीजिये , फिर आगे चर्चा करते हैं 

बँटवारा कर दो ठाकुर। ………………………….…14
तन मालिक का धन सरकारी ……………………..16
मेरे हिस्से परमेसुर।…………………………….…..14

 

शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ ………………………….16
सड़कें दे दो / झंडों को ……………………..............14
पर्वत कूटनीति को अर्पित …………………………..16
तीरथ दे दो /पंडों को। …………………………….…14
खीर खांड ख़ैराती खाते ……………………………...16
हमको गौमाता के खुर……………………………….14

 

सब छुट्टी के दिन साहब के ……………………………16
सब उपास /चपरासी के ……………………………….14
उसमें पदक कुँअर जू के हैं …………………………..16
खून पसीने /घासी के ………………………………..14
अजर अमर श्रीमान उठा लें ……………………………….16
हमको छोड़े क्षण भंगुर//…………………………………..14

सादर. 

Comment by बृजेश नीरज on April 24, 2013 at 7:54pm

मेरी रचना मेरे विचार से आप द्वारा उल्लिखित तीनों नियमों का पालन करती है। यदि त्रुटि है तो कृपया मार्गदर्शन प्रदान करने का कष्ट करें।

मैं यह फिर से स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैंने अपना यह प्रयास सीमा जी का लेख पढ़कर ही किया था। यहां पर सीमा जी द्वारा अपने लेख में उल्लिखित एक अन्य नवगीत को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना चाहता हूं।

//बँटवारा कर दो ठाकुर। 
तन मालिक का धन सरकारी 
मेरे हिस्से परमेसुर।

शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ 
सड़कें दे दो 
झंडों को 
पर्वत कूटनीति को अर्पित 
तीरथ दे दो 
पंडों को। 
खीर खांड ख़ैराती खाते 
हमको गौमाता के खुर

सब छुट्टी के दिन साहब के 
सब उपास 
चपरासी के 
उसमें पदक कुँअर जू के हैं 
खून पसीने 
घासी के 
अजर अमर श्रीमान उठा लें 
हमको छोड़े क्षण भंगुर//

यहां पर चूंकि जिक्र हो ही गया है तो एक अन्य विधा जिसका जिक्र आपने किया है गीत और नवगीत में अंतर भी स्पष्ट कर दें तो मेरे लिए सहायक होगा।

सादर!

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 24, 2013 at 7:41pm

१. नवगीत में एक मुखड़ा और दो या तीन अंतरे होने चाहिये। 
२. अंतरे की अंतिम पंक्ति मुखड़े की पंक्ति के समान (तुकांत) हो जिससे अंतरे के बाद मुखड़े की पंक्ति को दोहराया जा सके। 
३. नवगीत में छंद से संबंधित कोई विशेष नियम नहीं है मगर पंक्तियों में मात्राएँ संतुलित रहे जिससे गेयता और लय में रुकावट न पड़े। 

४.नवगीत को छन्द के बंधन से मुक्त रखा गया है परंतु लयात्मकता आवश्यक  है, इसलिए लय को अवश्य ध्यान में रखकर लिखे और उस लय का पूरे नवगीत में निर्वाह करें।

Comment by बृजेश नीरज on April 24, 2013 at 7:36pm

आदरणीय प्राची बहन,

दरअसल मैंने ओ बी ओ पर जिस लेख को पढ़ा उसमें मात्राओं के बंधन का कोई जिक्र नहीं था। इसलिए मैंने मात्राओं की गणना नहीं की।

उसी लेख में प्रस्तुत एक उदाहरण का यहां जिक्र करना चाहता हूं।

//हर चेहरा चुगली करता है 

छिपे इरादों की 

भीतर के मरुथल 

बाहर के 

सावन भादों की// 

 वहीं आगे चर्चा को बढ़ाते हुए सीमा जी ने टिप्पणी में लिखा है-

//नव गीत तो शिल्प प्रधान नहीं है गीत में  गेयता का  तत्व ही अनिवार्य है | छंद संबंधी कोई विशेष आग्रह नहीं है ,तुकांत शब्दों का कोई विशेष बंधन नहीं है , झ के साथ ज का तुक चलेगा श के साथ ष मान्य है//

उक्त के संदर्भ में आपसे अनुरोध है कि कृपया नवगीत के इससे इतर यदि शिल्पगत नियम हैं तो उनकी जानकारी प्रदान करने का कष्ट करें जिससे कि आगे मैं इस विधा में अपने प्रयास को और सुधार सकूं।

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 24, 2013 at 7:16pm

प्रिय के इंतज़ार में , आने की आस में व्याकुल मन की दशा की सुन्दर अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई 

आदरणीय बृजेश जी गीत लेखन पर सद्प्रयास के लिए बधाई , किन्तु अंतरे व मुखड़े की मात्राओं में कोइ साम्य नहीं महसूस होता, गीत और नवगीत में मात्रा कितनी लेते हैं इसकी स्वतंत्रता होती है..पर अंतरे व मुखड़े की मात्राएँ सामान होनी चाहियें 

गौर कीजिये ,  

बस आस तुम्हारी बाकी है...............१७ 

इस आंख में आंसू बाकी है.....................१७ 

 

जब जब झरनों सी तरूणाई.........१६   (तरुणाई शब्द है )

आ आकर फिर लौटी है...............१४ 

तुम बन करके शीत चुभन........१४   तुम के स्थान पर शायद तब लिखना सही होता 

याद तुम्हारी लौटी है.........१५ 

 फिलहाल इस सद्प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएं..सादर.

 

Comment by बृजेश नीरज on April 24, 2013 at 7:10pm

आदरणीय केवल जी आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on April 24, 2013 at 6:43pm

आदरणीय भ्रमर जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 9:39am

आ0 बृजेश नीरज जी,  अतिसुन्दर और सुमधुर गीत। बधाई स्वीकारे।  सादर,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 24, 2013 at 12:29am

सुन्दर नव गीत वृजेश भाई ...कोमल भाव ..

जब जब झरनों सी तरुनाई 
आ आ के छू फिर  जाती है 
तब तब ही बन के शीत चुभन 
फिर  याद तुम्हारी आती  है 
जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service