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बोलो जी पाओगी ..........

तुम ने कहा,

तुम जी लोगी मेरे साथ हर हाल में,

मुझे शायद इसके लिये भी,

शुक्रिया अदा करना चाहिये तुम्हारा ......

 

पर क्या तुम जानती हो,

इस कमबख्त दुनियां में

जहां कोई किसी का सगा नहीं,

हालात कैसे हो सकते है....

 

बोलो जी पाओगी,

जब दुनियां भर के थपेड़े,

बिना दरबाजा खटखटाये,

हमारे कमरे में दाखिल होंगे......

 

बोलो जी पाओगी,

जब मेरी शायरी में,

तिलमिलाएगी भूख,

नीम से कडबे स्वाद के साथ.......

 

बोलो जी पाओगी,

जब अरमानो के बिस्तरे पे,

मैं गला घोटूंगा ख्वाबों का, 

जिम्मेदारयों सी सौतनो के साथ........

 

बोलो जी पाओगी,

जब रंगीनियत फटजायेगी,

लपेटना होगी मजबूरियां,

और घूरेंगी निगाहें नफरत से.......

 

बोलो जी पाओगी,

जब हमेशा मजमा लगेगा,

मेरे दुःख और नाकामियो का,

और लोग मुझे कमज़र्फ कहेगें.......

 

तुम्हे पता है ना,

ये गज़ल,गीत,कहानियां

बस सुनने में ही अच्छे है

ये नहीं देगें रोटी,कपडा और मकान

वर्ना तो चचा ग़ालिब अज़ीम शहंशाह होते

 

अब बोलो जी पाओगी,

और यदि अब भी जी पाओगी.......

तो हमारी महोब्बत में,

वों सब कुछ होगा,

जो कभी नहीं हुआ....

 

सुनों,

तुम ने कहा था,

तुम महोब्बत करती हो मुझसे,

मुझे शायद इसके लिये भी,

शुक्रिया अदा करना चाहिये तुम्हारा ......

~अमितेष

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Comment

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Comment by अमि तेष on January 3, 2013 at 3:55pm

शुक्रिया  .......संदीप जी और सुमन जी ........मैं इस रचना को पोस्ट करते समय डर रहा था .... पर अब मुझे यकीन है ये अच्छी है

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 3, 2013 at 3:42pm

वाह बहुत खूब संवेदनाओं से भरी इस रचना के लिए बधाई हो आपको

Comment by SUMAN MISHRA on January 3, 2013 at 3:16pm

जीने का मकसद तो बता ही दिया जीने के लिए कुछ तो लड़ना होगा ,,,सुंदर कविता ,,,

कृपया ध्यान दे...

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