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आपने सराहा / बड़ा मजा आया


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यह जुबाँ कहती जुबानी, जो जवानी ढाल पर ।
क्या करे शिकवा-शिकायत, खुश दिखे बदहाल पर ।|

आँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -
नाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ।।


कर बगावत हुश्न से जब इश्क अपने आप से -
थूक कर चलता बना बेखौफ माया जाल पर ।।

आँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर
चाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।

वापसी मुश्किल तुम्हारी, तथ्य रविकर जानते
कौन किसकी इन्तजारी कर सका है साल भर ||

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Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 7:43pm

आपकी ग़ज़ल पढ़कर भी रवि भाई बड़ा मजा आया बहुत खूब दाद कबूलें 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 3:40pm

रविकर जी नमस्कार !  खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल करें

खास कर ये शेर तो माशाल्लाह कमाल का है ....

आँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर 
चाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 3, 2012 at 12:04pm

आदरणीय सर यह तो आपका स्नेह है मेरे प्रति अन्यथा मैं अभी इतना बड़ा कहाँ हुआ हूँ जो आपकी मदद कर सकूँ, आप खुद बहुत सामर्थ्य रखते हैं.

Comment by रविकर on December 3, 2012 at 11:53am

प्रिय अरुण -
आपकी गजल पर चार पंक्तियों की टिप्पणी की थी कल -
पुन: देखने पर लगा की कुछ ख़ास लिखा गया है-
तीन शेर और जोड़ दिए-
आभार आपका ||
आपके लेखन से भी खुब मदद मिल रही है-
पुन: आभार -प्रिय अरुण ||

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 3, 2012 at 11:15am

वाह आदरणीय रविकर सर खूबसूरत ग़ज़ल खास कर ये दो अशआर तो माशाल्लाह कमाल के हैं, दिली दाद कुबूल करें

आँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर
चाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।

वापसी मुश्किल तुम्हारी, तथ्य रविकर जानते
कौन किसकी इन्तजारी कर सका है साल भर ||

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