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कुम्हलाते मस्तिष्क (कुछ हाइकू )

 

१.
धूमिल ओज .
मासूम बचपन .
बस्तों का बोझ .
२.
कड़ी तपस्या .
विद्रूप बाल्य शिक्षा .
बड़ी समस्या .
३.
जीवन बूँद .
उन्मुक्त बचपन .
घिरती धुंध .
४.
रटंत शिक्षा .
कुम्हलाते मस्तिष्क .
व्यर्थ की दीक्षा .
५.
ढूँढे किरण .
बाल्यांकुर खिलते .
नेह सिंचन .
६.
वीडिओ गेम्स .
नशे में बचपन .
फँसते ब्रेन्स .

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 6:31pm
आदरणीया डॉ. प्राची दी!
समसामयिक विषय पर अच्छी भाव प्रवणित रचना जिसके लिये आप बधाई की पात्रा है।किन्तु दीदी मेरी मान्यता के अनुसार इस विधा में काव्य के भाव पूर्णत: निखर कर नहीं आयें,इन्हें और अवकाश चाहिए था।क्या इसी विषय पर किसी अन्य विधा में कलम नहीं आजमाना चाहिए? सोचिएगा।
सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 28, 2012 at 2:52pm

आपको ये हाइकू प्रभावित कर सके इस हेतु आपका आभार राकेश झा जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 28, 2012 at 2:51pm

इन हाइकुओं को सराह, लेखनी को मान देने हेतु आभार आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 27, 2012 at 8:37am

डॉ. प्राची जी

             सादर,

वीडिओ गेम्स .
नशे में बचपन .
फँसते ब्रेन्स .
बच्चों को ले कर चिंता झलकाते सुन्दर हाइकू. बधाई.
Comment by राजेश 'मृदु' on August 25, 2012 at 2:56pm

हाइकु की कथावस्‍तु के मर्म को पूरी तरह से उद्घाटित करती, सुंदर प्रस्‍तुति


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 25, 2012 at 9:30am
आपको यह हाइकू पसंद आये इस हेतु आभार आ. रेखा जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 25, 2012 at 9:29am
आदरणीया सीमा जी आपने इन हाइकू को सराह कर, मेरे विचारों को मान दिया है, इस हेतु आपका हार्दिक आभार. 
Comment by Rekha Joshi on August 24, 2012 at 10:37pm

रटंत शिक्षा .

कुम्हलाते मस्तिष्क .
व्यर्थ की दीक्षा .,अति सुंदर हाइकु आदरणीया डा प्राची जी ,हार्दिक बधाई 
Comment by seema agrawal on August 24, 2012 at 8:02pm

एक संवेदनशील विषय पर बहुत सम्यक  विचार प्रस्तुत किए हैं आपने ....बधाई प्राची जी 

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