For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनछुआ चैतन्य

क्या याद हैं
तुम्हें
वो लम्हे,
जब
हम तुम मिले थे ?

तब सिर्फ़
एक दूसरे को
ही नहीं सुना था हमने,
बल्कि,
सुना था हमने
उस शाश्वत खामोशी को
जिसने
हमें अद्वैत  कर दिया था....

तब सिर्फ़ 
सान्निध्य  को
ही नहीं जिया था हमने,
बल्कि,
जिया था हमने  
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की....

मेरे पास
कुछ न था
तुम्हें देने को
सिवाय अपनी चेतना के,
और तुम्हारे पास भी
सिर्फ़ चेतना ही तो थी
जिसे बाँटा था हमने
एक दूसरे से....

तब से
ये
‘अनछुआ चैतन्य’
ही तो है
जो ले जा रहा है हमें
अज्ञान के अन्धकार  से दूर
एक नयी दृष्टि के साथ
सत्य के और करीब…

(23-02-2012)

Views: 751

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by satish mapatpuri on July 12, 2012 at 2:24am

जिया था हमनें
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की....

खुबसूरत पेशकश ... बधाई डॉ . प्राची जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 12, 2012 at 12:13am

हाँ, यह प्रक्रिया reciprocal हुआ करती है. वृत्तियों की शुचिता के लिए प्रारब्ध का सधना आवश्यक है. और यही कर्म की सत्ता का नियामक होता है. सब गुँथे हुए हैं ..

सही है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 12:10am

 

ये दोनों तरफ  से होता है...
चित्त की वृत्तियों को साधने से भी, चैतन्य का विस्तार होता है,
और चैतन्य का विस्तार होने से भी वृत्तियाँ  शुचिता को प्राप्त होती है.
इसका विस्तार असीम है, और अनवरत बढ़ता है..
सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 12:00am
बहुत बहुत आभार प्रिय दीप्ति,
आपने इस रचना को पसंद किया और सराहा , आपको धन्यवाद. 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2012 at 11:59pm

वृत्तियों में अनवरत शुचिता चित्त के परिष्कृत होने का कारण होता है. यही परिष्कार चेतन की समृद्धि है. आवश्यक नहीं कि अवचेतन के समस्त विचार शाब्दिक होना चाहें. चैतन्य भाव समझ की सीमाओं का विस्तार बताता है. और यह अनवरत बढ़ता जाता है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 11, 2012 at 11:40pm

 

आदरणीय सौरभ सर,
इस रचना को पहले भी मैं यहाँ पोस्ट कर चुकी थी, पर नया प्रोफाइल बनाने के कारण वो अब यहाँ नहीं थी...
इस रचना को दुबारा पढने, और दुबारा अपनी बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार. 
 
अनछुआ-चैतन्य ...
चैतन्य तो हर पल अनछुआ ही है, क्या कोई छू कर लौट सका है?
मेरा सीमित ज्ञान.. यही कहता है की जितना हमारी चेतना का स्तर बढ़ता जाता है, हम उतने ही शुद्ध होते जाते हैं... उस चैतन्य की tranquality  को छू कर लौट आना संभव नहीं, क्योकि, जो छू पता है, वो वहीं बस जाता है..
 Like a drop, when it enters an ocean, it becomes an ocean.
सादर.
Comment by deepti sharma on July 11, 2012 at 11:35pm

‘अनछुआ चैतन्य’
ही तो है
जो ले जा रहा है हमें
अज्ञान के अंधकार से दूर
एक नयी दृष्टि के साथ
सत्य के और करीब…

वाह वाह बहुत खूब  सुंदर रचना  बधाई आपको

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 11, 2012 at 11:29pm

बड़ी ही सफाई से आपने प्रेम को आध्यत्म में लीन किया है

हमें अद्वेत कर दिया था....बहुत सुन्दर प्रयोग

जिया था हमनें
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की....  अनोखी प्रस्तुति  बहुत ही लाजवाब लगे

प्राची जी हार्दिक बधाई इस बेहेतरिन रचना के लिए


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2012 at 11:17pm

खामोशी, शून्यता और चैतन्य के बिम्बों पर विचारों के सापेक्ष अद्वैत होते जाना किसी सम्बन्ध का मूल है.

अनछुआ-चैतन्य .. यह विचित्र सा कर्मधारय लगा है. लेकिन अच्छा लगा है.

अभिव्यक्ति में भावनात्मक विस्तार को समेटने का प्रयास है.  इस ऊर्जस्विता को हार्दिक बधाई.

Comment by Rekha Joshi on July 11, 2012 at 11:15pm

आदरणीया डा प्राची जी 

‘अनछुआ चैतन्य’ 
ही तो है 
जो ले जा रहा है हमें 
अज्ञान के अंधकार से दूर 
एक नयी दृष्टि के साथ 
सत्य के और करीब,बहुत खूब ,भावपूर्ण अति सुंदर रचना ,हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service