For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हरे भरे ये वृक्ष हमारे
 देते ठंडी ठंडी छांव |
सबको जरूरत रहती इनकी
 नगर हो या हो गाँव  ||


बसंत के प्यारे मौसम में
नई -नई पत्ती जब आती हैं  |
थोड़ी सी ही जब चले पवन
झूम झूम ये लहराती हैं  ||

आते हैं जब इन पर फल
इनकी डालें झुक जाती हैं |
ना करो तुम घमंड कभी
बिन बोले ये कह जाती हैं  ||

वृक्ष सूखकर भी देखो
कितने काम हमारे आते हैं |
स्वयं जलकर आदमी को देते रोटी
परमार्थ का पाठ हमें पढ़ते हैं  ||

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Yogi Saraswat on May 16, 2012 at 10:10am

bahut bahut shukriya shri ajay kumar bohat ji ! mere shabd aapke paas tak pahunche , bahut achchha laga ! sahyog banaye rakhiyega ! dhanywad

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 15, 2012 at 2:11pm
वृक्ष सूखकर भी देखो
कितने काम हमारे आते हैं |
स्वयं जलकर आदमी को देते रोटी
परमार्थ का पाठ हमें पढ़ते हैं ||
sundar panktiyon ke liye badhai...
Comment by Yogi Saraswat on May 15, 2012 at 12:33pm

बहुत बहुत धन्यवाद , आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी ! आपको मेरे शब्द पसंद आये ! आपका सहयोग और समर्थन आगे भी चाहूँगा ! आपका आशीर्वाद मिला ! बहुत बहुत आभार

Comment by Yogi Saraswat on May 15, 2012 at 12:31pm

बहुत बहुत धन्यवाद , आदरणीय राजेश कुमारी जी ! आपका सहयोग और समर्थन आगे भी चाहूँगा ! आपका आशीर्वाद मिला ! बहुत बहुत आभार

Comment by Yogi Saraswat on May 15, 2012 at 12:30pm

बहुत बहुत धन्यवाद , आदरणीय श्री बागी जी ! आपका सहयोग और समर्थन आगे भी चाहूँगा ! आपका आशीर्वाद मिला ! बहुत बहुत आभार

Comment by Yogi Saraswat on May 15, 2012 at 12:29pm

बहुत बहुत धन्यवाद , आदरणीय महिमा जी ! सहयोग और समर्थन बनाये रखियेगा ! धन्यवाद

Comment by Yogi Saraswat on May 15, 2012 at 12:28pm

बहुत बहुत धन्यवाद , श्री भावेश राजपाल जी ! सहयोग और समर्थन बनाये रखियेगा ! धन्यवाद

Comment by Bhawesh Rajpal on May 15, 2012 at 4:04am
कुछ पंक्तियों में सार्थक सन्देश देती  सुन्दर रचना  ! हार्दिक बधाई योगी जी ! 
Comment by MAHIMA SHREE on May 14, 2012 at 8:58pm

आते हैं जब इन पर फल
इनकी डालें झुक जाती हैं |
ना करो तुम घमंड कभी
बिन बोले ये कह जाती हैं ...

योगी जी नमस्कार .. सुंदर अभिव्यक्ति ... बधाई आपको


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 14, 2012 at 8:49pm

सूखकर भी देखो ये वृक्ष,
काम हमारे आते हैं |
स्वयं जलकर देते रोटी
परमार्थ का पाठ पढ़ातें हैं  ||

सच यह रचना बहुत ही संदेशपरक है, मनुष्य को वृक्षों से सीख लेने की आवश्यकता है, सुन्दर भाव, कही कही प्रवाह में अटकाव है किन्तु रचना बहुत ही प्यारी है, बहुत बहुत बधाई योगी जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service