For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भीड़...महिमा श्री

हां भीड़ में शामिल
मैं भी तो हूँ
रोज
अलसुबह उठ के
जाती हूँ
शाम को आती हूँ
दूर से देखती हूँ
कहती हूँ
ओह देखो तो जरा
कितनी भीड़ है
और फिर
मैं भी भीड़ हो जाती हूँ

Views: 749

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 4:22pm
भवेश जी .. आपको रचना पसंद आई आभारी हूँ
Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 4:21pm
आदरणीय बागी जी .. .. मुझे अजय जी की रचना भीड़ बहुत ही सशक्त लगी अपनी भीड़ की अपेक्षा .. पर आपको मेरी रचना भी सशक्त लगी.... मुझे उत्साहित कर गयी ..
आपका ह्रदय से आभार और बहुत -२ धन्यवाद

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 11, 2012 at 4:15pm

वाह क्या संयोग है, भीड़ शीर्षक से आज दो दो रचनाएँ आई है और दोनों रचनाएँ ससक्त हैं , सच में हम भी तो एक हिस्सा हैं उस कथित भीड़ के , सुन्दर रचना महिमा जी, बधाई स्वीकार कीजिये |

Comment by Bhawesh Rajpal on May 11, 2012 at 4:10pm

I liked it >

Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 3:39pm
आदरणीया सरिता दी .. आपने बिलकुल सही समझा मैंने भीड़ समाज को ही कहा है जो अनवरत अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए और अपने जरुरतो की पूर्ति के लिए मशीन की तरह रोज काम पे जाती है बिना नागा .... और कल तक (बचपन) मैं दूर से देखती थी यानि इस जिम्मेवारी से मुक्त थी पर आज मैं भी इसका एक हिस्सा हूँ .. बाकि आपने जो कहा ""यहाँ जो भी हो रहा है वो हम सब की ज़िम्मेदारी है , इसी लिए पल्ला झाड़ने के बजाय सुधार करना हमारा कर्तव्य है, और शुरुआत भी खुद से ही करें तो ज्यादा अच्छा हो.. "" तो इस बात सहमत हूँ मशीन की तरह काम करने के बजाये इसमें पनपे बुराई को भी दूर करने के लिए हम सबको उत्साहित होकर प्रयासरत रहना चाहिए /
विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से आभार .....
Comment by Sarita Sinha on May 11, 2012 at 1:59pm

प्रिय   महिमा जी  , बात छोटी सी है, लेकिन बहुत बड़ी है..

आप ने हो सकता है ये सोच के न लिखा हो लेकिन मुझे ऐसा लगा कि "भीड़ " ये समाज है, हम सब इस का हिस्सा हैं,तो,  यहाँ जो भी हो रहा है वो हम सब की  ज़िम्मेदारी है , इसी लिए पल्ला झाड़ने  के  बजाय सुधार करना हमारा कर्तव्य है, और शुरुआत भी खुद से ही करें तो ज्यादा अच्छा हो.. 
ऐसा मुझे लगा..
आप ने क्या सोच के लिखा , बताइयेगा....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service