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फर्ज के अलाव में कब तक जलो 

परछाई भी कहने लगी इधर चलो 
चन्दन से लिपट खुद को समझ बैठे चन्दन, 
भ्रम जाल में खुद को कब तक छलो|
हम तो पानी पे तैरती लकड़ी हैं दोस्तों  
सागर भी कहता है अब यूँ ही गलो|
हंस- हंस के गले मिलते हैं जड़े काटने वाले, 
फिर चलते हुए कहते हैं फूलों फलो |
ख़त्म हो चुका है कब से तेल बाती का
पर उनका  यही कहना है रात भर बलो|
 फर्ज के अलाव में कब तक जलो 
परछाई भी कहने लगी इधर चलो| 

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Comment by AVINASH S BAGDE on February 23, 2012 at 10:39am

हंस- हंस के गले मिलते हैं जड़े काटने वाले, 

फिर चलते हुए कहते हैं फूलों फलो |.......kya andaz hai..wah.
फर्ज के अलाव में कब तक जलो 
परछाई भी कहने लगी इधर चलो| ...bahut gahari bat...sunder rajesh kumari ji.

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