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आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.

 

जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.

 

आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,

नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.

 

घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,

आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.

 

आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी, 

कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.

 

--अम्बरीष श्रीवास्तव

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 7, 2011 at 12:02am

भाई दुष्यंत सेवक जी ! आपका तहे दिल से शुक्रिया दोस्त !

Comment by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 11:56pm

आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी,

कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.

ज़हेनसीब ................... मैं तो बस यही कह सकता हूँ श्रीवास्तव साहेब ..................... लाजवाब

Comment by दुष्यंत सेवक on September 6, 2011 at 2:53pm

आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.

मैं खुद को रिलेट कर गया अंबरीष भैया...बेहद सुंदर प्रस्तुति बहुत बधाई आपको

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 11:08pm

स्वागत है भाई "अभिनव" जी ! आप जैसे विद्वान की सरहना मेरे लिए बहुत महत्त्व रखती है ! इस हेतु हम आपका हृदय से आभार व्यक्त करते हैं ! :-)

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 11:06pm

स्वागत है आदरणीय शर्मा जी ! आपकी यह तारीफ दिल में एक नया जोश पैदा कर देती है | इस खातिर तहे दिल से आपका शुक्रिया ! :-)

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 11:04pm

स्वागत है भाई आशीष जी! सराहना करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ ! इस बहर पर शेर कहने का अवसर इसी मुशायरे में जीवन में पहली बार अपने ओ बी ओ पर  ही मिला! शुरुआत में तो इसकी धुन समझ में ही नहीं आयी! फिर भाई बागी जी से वार्तालाप के उपरांत इसकी धुन स्पष्ट हुई फिर मुशायरे में गजलों का दौर जो शुरू हुआ तो इसके राज खुलते गये और परिणाम के रूप में दो गजलों के साथ साथ यह तीसरी ग़ज़ल भी आप सभी के सम्मुख आ गयी ! इसका सम्पूर्ण श्रेय आप सभी ओ बी ओ मित्रों को ही जाता है जिनकी संगत में यह ग़ज़ल कही जा सकी ! वास्तव में ओ बी ओ पर साहित्य का भरपूर खजाना है जो कि हममें से किसी एक के पास न होकर हम सभी के मध्य परस्पर बँटा हुआ है ! :-)

Comment by Abhinav Arun on September 5, 2011 at 8:36pm

""आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,

नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.""

वाह बहुत खूब !! जानदार ग़ज़ल !!!
Comment by Kailash C Sharma on September 5, 2011 at 8:27pm

आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.

 

.... बहुत खूबसूरत गज़ल । हरेक शेर उम्दा...

Comment by आशीष यादव on September 5, 2011 at 5:31pm

इश्क पे जोरदार अशआर कह गए आप|
हर शे'र मुकम्मल|
अंतिम वाला शहीदों को समर्पित शे'र का अंदाज बहुत अच्छा लगा|

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 3:36pm

स्वागत है भाई रवि गुरू जी ! अशआर की तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया !

कृपया ध्यान दे...

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