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ग़ज़ल

1222 1222 122
बड़ी दिल-जू रही सूरत हमारी
उदासी खा गई सूरत हमारी

ग़मों को एक चहरा चाहिए था
उन्हें भी भा गई सूरत हमारी

सभी हैरान होकर देखते हैं
लगे सबको नई सूरत हमारी

न जाने कौन शब भर ख़्वाब में था
किसे अच्छी लगी सूरत हमारी

हमारे लब भले चुप हो गये 'ब्रज'
कहे हर अनकही सूरत हमारी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 28, 2022 at 6:47pm

भाई जैफ आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Zaif on December 24, 2022 at 2:26pm

आ. बज्र जी, उस्ताद समर सर जी की बात सही है, 'रेख़्ता' में काफ़ी चीज़ें ग़लत हैं।

और ये ग़ज़ल बहुत ख़ूब हुई। सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 23, 2022 at 11:33pm

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय समर जी मार्गदर्शन के लिए...

Comment by Samar kabeer on December 23, 2022 at 6:44pm

'सभी हैरान होकर देखते हैं'

ये मिसरा बहतर है ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2022 at 8:21pm

आदरणीय समर जी आपकी बात दुरुस्त है...सुधार किया जा सकता है जैसे "सभी हैरान होकर देखते हैं" सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2022 at 7:44pm

आदरणीया सुधा जी आपका हार्दिक अभिनंदन संग आभार

Comment by Samar kabeer on December 22, 2022 at 4:08pm

//रेख़्ता पे "हैरानगी" शब्द बताया गया है//

रेख़्ता पर ग़लत बताया गया है, इसी तरह की और बहुत सी जानकारियाँ रेख़्ता पर ग़लत बताई जाती हैं,वो भरोसे लाइक़ नहीं है,आगे आप देख लें आपको क्या सहीह लगता है ।

Comment by Sudha tripathi on December 22, 2022 at 3:44pm

 जनाब  ब्रज जी,

नमस्कार

आपने बहुत अच्छी गजल कही है बधाई स्वीकार करें।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2022 at 12:04pm

रचना पटल पे आपकी गरिमामई उपस्थित के लिए हार्दिक आभार आदरणीय समर जी...रेख़्ता पे "हैरानगी" शब्द बताया गया है!?

Comment by Samar kabeer on December 21, 2022 at 6:24pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'सभी हैरानगी से देखते हैं'

इस मिसरे में 'हैरानगी' शब्द सहीह नहीं है, सहीह शब्द है "हैरानी" देखिएगा ।

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