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प्रिय सुनो तुम्हारी भूल नहीं

प्रिय सुनो तुम्हारी भूल नहीं

अवसाद नहीं रखना मन में

यह मौसम ही अनुकूल नहीं

 

चुप चुप रहना कुछ न कहना कैसे होगा

जब चीख रहीं होगीं लाखों जिज्ञासाएं

क्यूँ है? कैसे है? और रहेगा कब तक यूँ ?

बस बुरे ख्यालों के बादल घिर घिर छाएँ

अब ऐसा भी तो नहीं

के मेरे दिल में चुभता शूल नहीं

 

मैं कहीं रहूँ इस दुनिया में रहता तो हूँ

पर सच कहता हूँ मन का रहता ध्यान वहीँ

क्या हुई भूल आखिर क्या ऐसा बोल दिया

करता रहता हूँ दिनभर अनुसंधान यही

शायद कुछ सालों से घर में

आया गुलाब का फूल नहीं

 

जिनसे तुमने कुछ पीड़ा दिल की बतलाई

वो सब गुदाज तकिये बन बैठे हैं पत्थर

 

थी चहल पहल उठती थी हरदम झंकारें

वो बर्तन सारे बैठे हैं अब मुंह बाकर

झाडू पोंछा है एक ओर

बिस्तर की उडती धूल नहीं

प्रिय सुनो तुम्हारी भूल नहीं 

 

 मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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Comment

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Comment by Ajay Tiwari on January 1, 2018 at 11:58pm

आदरणीय संदीप जी, इस खूबसूरत गीत-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.

नव वर्ष मंगलमय हो ! 

सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 30, 2017 at 6:39pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी सराहना हेतु ह्रदय से आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by Mohammed Arif on December 30, 2017 at 1:51pm

आदरणीय संदीप कुमार जी आदाब,

                                   प्रेम की तीव्रता और उत्कंठा को प्रदर्शित करता बेहतरीन प्रेम गीत । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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