For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी जिन्दगी में इतने झमेले ना होते
गर तुम मेरे जज्बातों से खेले ना होते ,


बहुत पर खुशनुमा थी मेरी यह जिन्दगी
गर दिखाए हसीं- ख्वाबों के मेले न होते ,


रफ्ता-रफ्ता चल रहा था कारवां जिन्दगी का
दुनिया की इस महफिल में हम अकेले न होते ,


''कमलेश'' ना लुटता दिले- सकूं मेरा कभी
गर मेरी नजरों के सामने ,तेरे हाथ पीले ना होते ,


हमेशा ही कहर बरपा है इश्क पर जमाने का
राहें फूलों की होती कांटे भी न नुकीले होते

Views: 377

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 7, 2010 at 12:14pm
बढ़िया है कमलेश भैया, राणा भाई हमेशा अच्छी राह दिखाते है, थोडा एडिट कर लीजिये , रचना मे चार चाँद लग जायेंगे ,
Comment by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 10:41pm
SHUKAR HAI ISHWAR KA KISI NE YH JAHMAT TO UTHAYI ..KI MERI GALTIYON KA SUDHAR HO ..YE AAP KI NASIHAT PAR AMAL KARNA MERE BAS ME SHAYAD NAHI HAI ..KYONKI URDU BHASHA KA POORA GYAN NAHI HAI ..IS LIYE IN GALTIYON KO DDOR KARNE ME HAMESHA HI KAMJOR PATA HOON ..AAP MERI GAJAL KO SAHI KARNE ME MADAD KAREN ...REQUEST HAI

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 6, 2010 at 10:23pm
जितना जानता हूँ उस हिसाब से इमानदाराना राय पेश कर रहा हूँ

**मेरी जिन्दगी में इतने झमेले ना होते
गर तुम मेरे जज्बातों से खेले ना होते ,

बहुत खूब...बहुत सुन्दर.मतला..... दूसरे मिसरे में रवानी थोड़ा सा कम है
तुम मेरे (तुम्मेरे) यहाँ पर "सकता" है

**बहुत पर खुशनुमा थी मेरी यह जिन्दगी
गर दिखाए हसीं- ख्वाबों के मेले न(ना) होते

सुन्दर अल्फाज़....सुन्दर शेयर........पुनः दूसरे मिसरे में आपकी नज़रेसानी की दरकार है

**रफ्ता-रफ्ता चल रहा था कारवां जिन्दगी का
दुनिया की इस महफिल में हम अकेले न(ना) होते ,

गहरी सोच... गहरे विचार....परन्तु रवानी(गेयता) जाती हुई

**''कमलेश'' ना लुटता दिले- सकूं मेरा कभी
गर मेरी नजरों के सामने ,तेरे हाथ पीले ना होते ,

काफी दर्द झलकता है इस शेयर में...........इस शेयर में आपका नाम है(तखल्लुस नहीं कहूँगा)..अतः यह सबसे अंत में होना चाहिए
और एक बेहद ही टेक्नीकल बात ....... आपका काफिया........:झमेले :खेले :मेले :अकेले:..इसके बाद .......पीले...... जमा नहीं. आशा है आप समझ गए होंगे

**हमेशा ही कहर बरपा है इश्क पर जमाने का
राहें फूलों की होती कांटे भी न नुकीले होते(नुकीले ना होते)
सुन्दर शेयर......लाजवाब...रदीफ़-काफिया उलटे लगे है. और वही इसके ऊपर वाली काफिये वाली बात अखरती है...(नुकीले)

कुल मिलाकर एक सुन्दर ग़ज़ल लिखने का प्रयास है.....भावनाएं सामने दिखाई देती है...थोड़ा सा रवानी और विन्यास की कमी दूर करने से उत्कृष्ट ग़ज़ल कही जा सकती है
आशा है मेरे सुझावों को आप अन्यथा नहीं लेंगे
धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service