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लघु-कवितायें -02 - डॉo विजय शंकर

मैं बड़ा ,
तू बड़ा ?
तू कैसे बड़ा ?
मैं सबसे बड़ा।
हर बड़े से बड़ा ,
बड़ों बड़ों से बड़ा।
मैं बड़बड़ा , मैं बड़बड़ा,
मैं सबसे बड़ा बड़बड़ा .
********************
हमको मालूम है कि
बातों से कुछ नहीं होता है ,
बस इसीलिये तो
हम बातें करते हैं , क्योंकि
बातों से किसी पक्ष को
कोई फरक नहीं पड़ता।
**********************

अच्छे को अच्छा कहने से
अपना क्या अच्छा होगा ,
अपने को अच्छा कहने से
अपना वो अच्छा न भी हो ,
अपना तो अच्छा ही होगा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2016 at 5:38pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद ,सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2016 at 9:46am

आदरनीय विजय भाई , आपकी तीनो लघु कवितायें आज के राजनैतिक स्थिति को बयाँ करने मे सक्षम हैं । हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2016 at 6:49pm
आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी , आपको रचना पसंद आई , अच्छा लगा , आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2016 at 6:49pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ,उत्साह वर्धन के लिए आभार और धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2016 at 12:01pm

अच्छे को अच्छा कहने से
अपना क्या अच्छा होगा ,
अपने को अच्छा कहने से
अपना वो अच्छा न भी हो ,
अपना तो अच्छा ही होगा।----बहुत पते की बात की है 

अलग ही तरह की लघु कथाएँ गहन सार्थक भाव से समृद्ध 

हार्दिक बधाई आ० डॉ० विजय शंकर जी  

Comment by Shyam Narain Verma on June 20, 2016 at 10:57am
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

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