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ग़ज़ल - मुझ पानी से मिला नहीं, जो तेल रहा है ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22

लगता है अब काला पैसा खेल रहा है

मुल्क हमारा इसीलिये तो झेल रहा है

 

वर्षो तक अंधों के जैसे राज किया जो

वो भी देखो प्रश्न हज़ारों पेल रहा है

 

धर्म अगर केवल होता तो ये ना होता

मगर धर्म से राज नीति का मेल रहा है

 

कैसे उसकी यारी पर विश्वास करूँ मैं

मुझ पानी से मिला नहीं, जो तेल रहा है

 

देखो चीख रहा है वो भी परचम ले कर

जो ख़ुद अपने ही निजाम में फेल रहा है

 

वो चेह्रा जो चीख रहा है सबसे ज्यादा  

उसका तो घर बार हमेशा जेल रहा है  

 

जीत न पायेगा शतरंजी खेल कभी तू  

वो जो चाहा तू वो गोटी खेल रहा है

*********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 23, 2016 at 1:40pm

आदरनीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 23, 2016 at 1:31pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..इस ग़ज़ल के माध्यम से आपने खरे खरे अंदाज में बात की है ..हर शेर बढ़िया है इस रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2016 at 9:32am

आदरणीय राजेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका ह्र्दय से अभार ।

Comment by Rajendra kumar dubey on June 22, 2016 at 8:47am
आदरणीय गिरीराज जी बेहद उम्दा गजल के लिए हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2016 at 8:40am

आदरणीय महेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by Mahendra Kumar on June 22, 2016 at 8:26am
आदरणीय गिरिराज सर, बहुत ही अच्छी ग़ज़ल! इस बोल्ड और तीखा व्यंग्य करते मिसरे (वो भी देखो प्रश्न हज़ारों..) के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 21, 2016 at 5:22pm

आदरणीय सुरेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 21, 2016 at 5:22pm

आदरणीया राजेश जी , प्रबन्धन मे ( प्रबन्ध करने में ) फेल होना एक बात है , और खुद के प्रबन्धन रहते स्वयं फेल हो जाना और बात है ।

मै दूसरी वाकी बात कहना चाह रहा हूँ । सब अधिकार खुद के पास होते हुये स्वयम व्यक्तिग रूप से फेल हो गये , यानी खुद कोई प्रगति नही कर पाये । प्रबन्धन का फेल होना एक समूह का फेल होना होता है , किसी एक व्यक्ति का नही । अब देखिये शे र को --

देखो चीख रहा है वो भी परचम ले कर

जो ख़ुद अपने ही निजाम में फेल रहा है


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Comment by rajesh kumari on June 21, 2016 at 4:29pm

वैसे आपका कहना भी सही लग रहा है आदरणीय ---अपने सिस्टम में फेल रहा है 


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Comment by rajesh kumari on June 21, 2016 at 4:24pm

ये  हो सकता है   आदरणीय    ---जो ख़ुद अपने  ही निज़ामत  में फेल रहा है-----अर्थात अपने ही मेनेजमेंट में फेल रहा 

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